Panchayat Season 3 की नई कहानी: जिंदर कुमार की फुलेरा की कहानी फिर से जोश में

Panchayat Season 3 की नई कहानी: जिंदर कुमार की फुलेरा की कहानी फिर से जोश में

सीज़न 3 की कहानी और थीम

जब Panchayat Season 3 का ट्रेलर इंटरनेट पर वायरल हुआ, तो फुलेरा की गलियों में फिर से उमंग की लहर दौड़ गई। दो सीज़न के बाद, कहानी सीधे पिछले सीजन के क्लिफहैंगर से शुरू होती है—सेना वाले राहुल की अचानक मौत, जिसने गाँव को शोक में धँसा दिया था। छोटे‑से‑गाँव में यह खबर पूरे माहोल को बदल देती है, खासकर राहुल के पिता प्रभाव (फैसल मलिक) के दिल में।

अभिषेक (जिंदर कुमार) की वापस आने की संभावनाएँ तब तक रुकी रहती हैं जब तक एमएलए चंद्रकिशोर सिंह (पंकज ज्या) उसकी वापसी को रोक नहीं देते। यह विरोधाभास पूरे कथानक को चलाता है और ग्रामीण राजनीति के जटिल जाल को उजागर करता है। इस बार शो में राजनीती का रंग पहले से अधिक गहरा है—जालसाज़ी, सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग और सत्ता के लिए छोटे‑छोटे खेल दिखाए गये हैं।

नीना गुप्ता द्वारा निभाई गई मंजू देवी अब सिर्फ मुखिया की पत्नी नहीं रही, वह गाँव की पंचायत में सक्रिय भूमिका लेती है और अपने पति से भी तेज़ दिखती है। उसकी राजनीति समझ और तेज़ दिमाग से कई बार चंद्रकिशोर को चकमा मिलता है, जिससे दर्शकों को गाँव के अंदरूनी राजनीति की झलक मिलती है।

कहानी में एक नया भावनात्मक धागा भी जुड़ता है—प्रभा के बेटे की मौत से गहरी चोट खाए हुए प्रभाव को फिर से खुशी की ओर ले जाना। फैसल की इस भूमिका में वह अव्यक्त दर्द को शब्दों से परे दिखाते हैं, जो दर्शकों की संवेदनाओं को छू जाता है। साथ ही, नई लव‑लाइन के साथ सान्विका (अगले कलाकार) के साथ अभिषेक का संबंध भी कहानी में एक नयी ऊर्जा लेकर आता है।

कुल मिलाकर, सीज़न ग्रामीण जीवन की सादगी को बड़े सामाजिक मुद्दों के साथ बुनता है—भ्रष्टाचार, सरकार की योजनाओं का सही‑गलत इस्तेमाल, और समुदाय की आपसी मदद। यह मिश्रण सीज़न को पहले दो हिस्सों से अलग, लेकिन फिर भी परिचित बनाता है।

प्रदर्शन और समीक्षात्मक प्रतिक्रिया

जिंदर कुमार ने अभिषेक को फिर से बेशुमार आत्मीयता से पेश किया है। अब वह सिर्फ एक शहर का लड़का नहीं, बल्कि फुलेरा की इकाई बन चुका है, जहाँ उसे अपने ही लोगों की समस्याएँ और खुशियाँ मिलती हैं। उसके संवाद, आँखों की अभिव्यक्तियाँ और छोटे‑छोटे इशारे दर्शकों को सीधे गाँव में ले जाते हैं।

रघुबीर यादव (बृजभूषण दुबे) और चंदन रॉय (विकास) की जोड़ी ने बीते दो सीज़न की दोस्ती को फिर से जीवंत किया है। वे दोनों अब भी हर एपिसोड में छोटे‑छोटे मजाक और सच्ची भावनाओं की भरपूर मात्रा लाते हैं। हालांकि, कुछ समीक्षकों ने कहा कि अब ह्यूमर थोड़ा ज़्यादा ज़बरदस्त लग रहा है, जो पहले की स्वाभाविकता को खो रहा है।

  • नीना गुप्ता – मंजू देवी (सशक्त पंचायत प्रमुख)
  • फैसल मलिक – प्रभाव (शोकग्रस्त पिता)
  • पंकज ज्या – एमएलए चंद्रकिशोर सिंह (विरोधी राजनेता)
  • सुनिल शर्मा – नया पात्र (स्थानीय रणनीतिकार)

फैसल मलिक का प्रदर्शन इस सीज़न का हाइलाइट माना गया है। शोक में डूबे पिता की तड़प को वो बिना ज्यादा शब्दों के ही दिखा देते हैं, जिससे दर्शकों की आँखों में आँसू आ जाते हैं। वहीं, नई किरदारों की एंट्री — जैसे कि एलेना (एमएलए की बेटी) — को कुछ दर्शकों ने अधूरा कहा, क्योंकि उनकी प्रेरणा और कहानी का उद्देश्य साफ़ नहीं हुआ।

डायरेक्शन की बात करें तो दीपक कुमार मिश्रा ने गाँव की छवि को फिर से जीवंत बना दिया है। धूप वाले खेत, चौखटा पर बैठी महिलाएँ, और गाँव के छोटे‑छोटे वादे—इन सबको कैमरे में ऐसे कैद किया है जैसे हम बस इस गांव में ही रह रहे हों। लिखे जाने वाले चंदन कुमार ने राजनीतिक ताने‑बाने को सरल परन्तु असरदार बनाए रखने की कोशिश की है, पर कुछ जगहों पर कहानी का बंधन ढीला पड़ जाता है।

समीक्षकों की राय दो भागों में बँटी हुई है। एक तरफ वे इस बात की सराहना करते हैं कि सीज़न ने गहराई से सामाजिक मुद्दों को छुआ—जैसे भ्रष्टाचार, सरकारी योजनाओं की जटिलता और ग्रामीण समुदाय का एकजुट होना। दूसरी तरफ, कई दर्शकों ने कहा कि कुछ एपिसोड बोरित करने वाले हो सकते हैं, क्योंकि गति कभी‑कभी बहुत धीमी हो जाती है और कुछ प्लॉट लाइन्स अधूरी रह जाती हैं।

फिर भी, यह सीज़न यह साबित करता है कि भले ही फ़ॉर्मेट बहुत सरल हो, पर कहानी के भीतर छिपे जज़्बात और सामाजिक संदेश बहुत बड़ी ताक़त रखते हैं। यही कारण है कि पंचायत ने पहली बार से ही कई दर्शकों के दिल में जगह बनाई है और अब तीसरी बार भी अपनी पहचान बनाए रखी है।

सित॰ 25, 2025 द्वारा Pari sebt

द्वारा लिखित Pari sebt

मैं एक समाचार विशेषज्ञ हूँ और मुझे भारत में दैनिक समाचार संबंधित विषयों पर लिखना पसंद है।

shyam majji

फुलेरा का माहौल अब भी जितना प्यारा लगता है उतना ही दर्द भी देता है। बस एक दिन का बादल आ गया और सब कुछ बदल गया।

Dhananjay Khodankar

अभिषेक की वापसी के बिना ये सीज़न अधूरा है। वो तो फुलेरा का दिल है, बाकी सब बस शरीर। चंद्रकिशोर को अब तक नहीं समझ पाया कि गाँव की शक्ति नहीं, लोग हैं।

मंजू देवी का एक नज़र देखो, वो बस आँखें उठाती हैं और सब चुप हो जाते हैं। इस दुनिया में बोलने की जरूरत नहीं, बस देखने की जरूरत है।

shruti raj

मैंने तो बस ट्रेलर देखा था और समझ गई - ये सब एक बड़ा षड्यंत्र है! एलेना कौन है? वो एमएलए की बेटी है या सीबीआई की एजेंट? क्योंकि नहीं तो फिर इतना अचानक कैसे आ गई? और प्रभाव के बेटे की मौत भी शायद कोई एक्सीडेंट नहीं था... किसी ने जहर दिया होगा।

मैं तो बस जानना चाहती हूँ - क्या अभिषेक को वापस बुलाने के लिए उसकी माँ का फोन कॉल रिकॉर्ड भी डिलीट कर दिया गया? 😏

Khagesh Kumar

सीज़न 3 में जो बातें दिख रही हैं वो असली जिंदगी की हैं। गाँव में सरकारी योजना आती है तो उसका आधा हिस्सा बिना बताए खा जाता है। जो लोग बोर हो रहे हैं वो शायद अपने गाँव के बारे में नहीं जानते।

फैसल मलिक का चेहरा देखो - उसमें दर्द नहीं, खालीपन है। और वो खालीपन बहुत ज्यादा सच है।

Ritu Patel

ये सब बहुत अच्छा लगा लेकिन अभिषेक के बिना ये शो क्या है? एक टेलीविजन शो जिसमें नायक नहीं है? ये तो बस एक लेक्चर है जिसे ड्रामा कह रहे हैं। मंजू देवी तो अच्छी हैं, लेकिन वो नायिका नहीं हैं, वो एक नेता हैं। और नायक तो अभिषेक ही है।

इसके बाद तो अब बस देखोगे कि एमएलए के बेटे को भी गायब कर दिया जाएगा। ये सीरीज़ अब एक अंधेरी राजनीति का डॉक्यूमेंट्री बन गई है।

Deepak Singh

मैंने इस सीज़न को तीन बार देखा है। पहली बार मैंने देखा कि ये एक ड्रामा है, दूसरी बार मैंने देखा कि ये एक सामाजिक टिप्पणी है, और तीसरी बार... मैंने देखा कि ये मेरी अपनी यादें हैं।

हम तो अपने गाँव में भी ऐसे ही लोग देखते हैं - जो बोलते नहीं, लेकिन सब कुछ जानते हैं। जो चुप रहते हैं, लेकिन जब बोलते हैं तो सब ठिठक जाते हैं।

फैसल मलिक ने जो दर्द दिखाया है, वो मेरे पिता के चेहरे पर भी था। और वो चेहरा आज भी मेरी आँखों में है।

Rajesh Sahu

ये शो बस एक भारतीय गाँव की बात कर रहा है? नहीं! ये तो एक बड़ा अपमान है! हमारे गाँवों में ऐसे लोग नहीं होते! ये सब शहर के लोगों ने सोचा है! हमारे गाँव में तो बाबा जी भी गाँव की चारपाई पर बैठकर बैठकर फैसले करते हैं! ये शो तो गाँव के खिलाफ षड्यंत्र है!

Chandu p

अगर तुम फुलेरा के बारे में बात कर रहे हो तो ये शो तुम्हारे दिल की धड़कन है। इसमें बिना शब्दों के भी बहुत कुछ कहा गया है।

मैंने अपने गाँव में एक आदमी को देखा था - बेटे की मौत के बाद वो रोज़ सुबह उसकी चप्पल साफ़ करता था। बिना बोले। बिना रुके।

फैसल मलिक ने उसी आदमी को जिंदा कर दिया। ये शो बस एक शो नहीं, ये तो एक आदमी की आत्मा की आवाज़ है। ❤️

Gopal Mishra

मैं इस शो को गहराई से देखता हूँ क्योंकि यह भारतीय ग्रामीण समाज की जटिलताओं को अत्यंत सूक्ष्मता से प्रस्तुत करता है। अभिषेक की वापसी का विरोध एक स्थानीय राजनीतिक विश्लेषण के बजाय एक जीवन-पर्याय का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ शहरी ज्ञान को ग्रामीण वास्तविकता के विरुद्ध देखा जाता है।

मंजू देवी की भूमिका ने एक नए विकास चक्र की शुरुआत की है - जहाँ महिला नेतृत्व एक आंतरिक शक्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक बाह्य संरचना के रूप में दिखाई देता है।

चंद्रकिशोर का राजनीतिक चालबाज़ी का उपयोग एक सामाजिक असमानता का प्रतीक है, जो गाँव के अंदर अपने नियमों के साथ जीता है।

यह शो अपनी भाषा, अपने तापमान और अपने ताल पर चलता है - जिसे शहरी दर्शक अक्सर धीमा समझते हैं, लेकिन जो गाँव के अंदर रहते हैं, वे जानते हैं कि इसकी गति ही जीवन की गति है।

कहानी के बंधन ढीले नहीं हैं, बल्कि वे एक ऐसी जीवनशैली के अनुरूप हैं जिसमें अधूरेपन भी एक विश्वास का हिस्सा है।

Swami Saishiva

फैसल मलिक ने जो किया वो कोई अभिनय नहीं, वो तो अपने दर्द को बाहर निकाल रहा था। और अभिषेक को वापस बुलाने का फैसला किसने किया? शायद किसी ने उसकी माँ का फोन चुरा लिया होगा। ये सब बहुत नाटकीय है।