समुद्र में प्रकाश संश्लेषण के बिना उत्पन्न हुआ 'डार्क ऑक्सीजन', नये अध्ययन से खुलासा

समुद्र में प्रकाश संश्लेषण के बिना उत्पन्न हुआ 'डार्क ऑक्सीजन', नये अध्ययन से खुलासा

समुद्र के तल पर उत्पन्न हुआ 'डार्क ऑक्सीजन'

नया अध्ययन यह साबित करता है कि ऑक्सीजन को उत्पन्न करने के लिए केवल प्रकाश संश्लेषण ही आवश्यक नहीं है। इस शोध ने समुद्र के तल पर 'डार्क ऑक्सीजन' उत्पन्न होने की खोज की है, जो वैज्ञानिकों के लिए एक चौंकाने वाला तथ्य है। इस अध्ययन में यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका के दर्जन भर से अधिक वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया और 'डार्क ऑक्सीजन' को लेकर महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले।

शोधकर्ताओं के अनुसार, समुद्र के तल पर पाए गए 'पॉलिमेटालिक नोड्यूल्स' में ये ऑक्सीजन उत्पन्न हो रही है। ये नोड्यूल्स हवाई और मेक्सिको के बीच के समुद्री तल पर पाए जाते हैं और इनमे कोबाल्ट, निकल, मैंगनीज़ और कॉपर जैसे खनिज शामिल होते हैं।

पॉलिमेटालिक नोड्यूल्स: चमत्कारी खनिज

अध्ययन के दौरान, वैज्ञानिकों ने इन नोड्यूल्स को रसायनों या ठंडे समुद्री पानी के साथ मिलाया और पाया कि इनमें ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है। इस शोध का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर एंड्रयू स्वीटमैन, जो स्कॉटिश एसोसिएशन फॉर मरीन साइंस से जुड़े हैं, ने बताया कि ये खनिज इलेक्ट्रिक रूप से चार्ज होते हैं और समुद्री जल को ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में विभाजित करते हैं, जैसे बैटरी के अंश।

पॉलिमेटालिक नोड्यूल्स की इस खासियत ने गहरे समुद्र में खनन की नई संभावनाओं को उजागर किया है। इन खनिजों का उपयोग लिथियम-आयन बैटरी के उत्पादन में होता है, जिसकी आज बाज़ार में अत्यधिक मांग है और इसकी कीमत ट्रिलियन डॉलर तक मानी जाती है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए चुनौतियाँ

पर्यावरण संरक्षण के लिए चुनौतियाँ

हालांकि, एंड्रयू स्वीटमैन जैसे वैज्ञानिकों को चिंता है कि गहरे समुद्र में खनन प्रक्रियाएं 'डार्क ऑक्सीजन' के उत्पादन को बाधित कर सकती हैं, जिससे समुद्री जीवन पर गंभीर असर पड़ सकता है।

यह संज्ञान लेना आवश्यक है कि गहरे समुद्र में खनिजों का उत्खनन पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डाल सकता है और इस तरह की प्रक्रियाओं को पर्यावरण अनुकूल प्रक्रिया के तहत ही किया जाना चाहिए। इस अध्ययन का यही मुख्य संदेश है कि समुद्री पर्यावरण की संरक्षण सुनिश्चित करते हुए खनिजों की खोज और उत्पादन को आगे बढ़ाया जाए।

भविष्य के लिए महत्त्वपूर्ण धरोहर

गहरे समुद्र में ‘डार्क ऑक्सीजन’ के उत्पादन के महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष एक बड़ी वैज्ञानिक खोज है। यह न केवल ऑक्सीजन के उत्पादन के पारंपरिक सिद्धांतों को चुनौती देता है, बल्कि समुद्री पर्यावरण को संरक्षित करने की नयी दिशा भी दिखता है। इसके उपाय निकालकर ही गहरे समुद्र में खनन के दौरान हम पर्यावरण संरक्षण को भी सुनिश्चित कर सकते हैं।

इस अध्ययन की प्रमुख चुनौती यही है कि किस प्रकार से गहरे समुद्र में खनन करते समय इस प्रक्रिया को बाधित न किया जाए और समुद्री जीवन और पर्यावरण का संरक्षण सुनिश्चित किया जाए।

निष्कर्ष

निष्कर्ष

‘डार्क ऑक्सीजन’ की इस नई खोज ने समुद्र विज्ञान और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में नये सवाल खड़े कर दिए हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में और गहन अनुसंधान की आवश्यकता होगी ताकि समुद्र के तल पर हो रहे इस अद्भुत रासायनिक प्रक्रिया के पीछे के कारणों को समझा जा सके और इस खोज का समाज के हित में उपयोग किया जा सके।

द्वारा लिखित Pari sebt

मैं एक समाचार विशेषज्ञ हूँ और मुझे भारत में दैनिक समाचार संबंधित विषयों पर लिखना पसंद है।

megha u

ये सब झूठ है 🤡 किसी ने डार्क ऑक्सीजन कभी नहीं देखा... ये सब NASA और गूगल की कॉन्सिरेसी है जो हमें बैटरी बेचना चाहते हैं।

pranya arora

अगर ऑक्सीजन बिना प्रकाश के बन रहा है तो ये दुनिया के बारे में हमारी सब धारणाएं बदल जाती हैं। क्या हम असल में ब्रह्मांड के बारे में कुछ भी नहीं जानते? 🤔

Arya k rajan

ये खोज तो बहुत बड़ी है। पॉलिमेटालिक नोड्यूल्स असल में नेचर की अपनी बैटरी हैं। अगर हम इन्हें नुकसान पहुंचाएंगे तो समुद्री जीवन का अंत हो सकता है। हमें संतुलन बनाना होगा।

Sree A

Electrochemical water splitting via Mn/Co oxides in nodules. Redox potential ~0.8V vs SHE. Confirmed via in-situ O2 microsensors. Peer-reviewed in Nature Geo.

DEVANSH PRATAP SINGH

मुझे लगता है ये खोज भारत के लिए बहुत अच्छी है। हम इन नोड्यूल्स को अपने तरीके से एक्सप्लॉइट कर सकते हैं। बस सावधानी से।

SUNIL PATEL

ये सब बकवास है। वैज्ञानिकों के लिए ये खोज नयी नहीं है। 1987 में जापानी वैज्ञानिकों ने पहले ही इसकी पुष्टि कर दी थी। अब ये भारतीय मीडिया फिर से बना रहा है।

Avdhoot Penkar

तो अब डार्क ऑक्सीजन है? यानि अंधेरे में ऑक्सीजन? 😂 अब तो बैंगलोर के लोग भी अपने बेडरूम में ऑक्सीजन बना रहे होंगे।

Akshay Patel

इस तरह की खोजें तो अमेरिका और चीन के लिए बहुत अच्छी हैं। हम भारतीय तो बस इनके बारे में पढ़ते रहेंगे। हमारे पास तो बैटरी बनाने की तकनीक तक नहीं है।

Raveena Elizabeth Ravindran

ये डार्क ऑक्सीजन क्या है? मैंने तो स्कूल में प्रकाश संश्लेषण ही सीखा था। अब ये क्या नया नाम लगा रहे हो? लोगों को भ्रमित करने के लिए नया टर्म बनाया है।

Krishnan Kannan

इस खोज के बाद अगर हम इन नोड्यूल्स को बचाने की कोशिश करेंगे तो शायद ये भविष्य की सबसे बड़ी बैटरी बन जाएंगी। बस इसे खोदने के बजाय समझने की कोशिश करें।

Dev Toll

मैंने एक बार ऑक्सीजन सेंसर लगाया था गहरे समुद्र में। वहां ऑक्सीजन की सांद्रता अजीब तरह से बदल रही थी। शायद ये वही था।

utkarsh shukla

ये खोज तो बिल्कुल जबरदस्त है! 🚀 भारत इसे अपनाए तो दुनिया की सबसे बड़ी साफ ऊर्जा शक्ति बन जाएगा! हम तो अभी तक बिजली के लिए बाढ़ लगाते हैं! अब तो बदलाव आना चाहिए!

Sree A

Sree A: ये नोड्यूल्स का ऑक्सीजन उत्पादन तापमान और pH पर निर्भर करता है। 2-4°C और pH 7.8-8.2 पर मैक्सिमम। ये वैज्ञानिक डेटा है, न कि फिक्शन।