दिल्ली में दिवाली पर प्रदूषण का भयानक स्तर, एयर क्वालिटी 'बेहद ख़राब' श्रेणी में पहुँची

दिल्ली में दिवाली पर प्रदूषण का भयानक स्तर, एयर क्वालिटी 'बेहद ख़राब' श्रेणी में पहुँची

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, जो पहले से ही प्रदूषण की मार झेल रही थी, ने दिवाली के दिन प्रदूषण स्तर में अत्यधिक वृद्धि का अनुभव किया। हर साल की तरह, दिवाली के समय यहां पर अनेक स्थानों पर धुआँ और वायु प्रदूषण का माहौल होता है। इस साल का दृश्य कुछ अलग नहीं था, जहाँ देखो वहाँ पटाखों की धुंध ने आसमान को घेर लिया था। एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 'बेहद ख़राब' श्रेणी में पहुँच गया, जो दर्शाता है कि स्थिति मानवीय स्वास्थ्य के लिए बहुत ही गंभीर है।

विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली की हवा की खराब स्थिति के लिए कई तत्व जिम्मेदार हैं, लेकिन दिवाली के समय पटाखों का इज़ाफा इस समस्या को और भी बढ़ा देता है। पटाखों से निकलने वाले धुएं में नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें होती हैं, जो वायु को अत्यधिक प्रदूषित कर देती हैं। यह न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है।

दिल्ली के प्रदूषण की इस गंभीर स्थिति ने प्रशासन को भी चेताया है। सरकार और प्रशासन हर साल नागरिकों से पटाखों का कम से कम उपयोग करने की अपील करते हैं, साथ ही यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि त्यौहार के समय वायु की गुणवत्ता नियंत्रण में रहे। हालांकि, इस साल के दिवाली पर प्रशासन की यह अपील पूरी तरह विफल साबित हुई।

दिवाली पर हवा की गुणवत्ता में इस खतरनाक गिरावट का सबसे ज्यादा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है, जिनकी पहले से साँस संबंधी समस्याएं हैं। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे लोगों को पूर्णतः घर के अंदर रहना चाहिए और बाहर की वायु से सख्ती से बचना चाहिए। साथ ही मास्क पहनना और एयर प्यूरीफायर का उपयोग करना उनके लिए आवश्यक हो सकता है।

वातावरणीय प्रदूषण दिल्ली की केवल एक दिवाली की समस्या नहीं है, बल्कि यह सालभर जारी रहने वाली समस्या बन चुकी है, जो विशेष रूप से ठंड के मौसम में गंभीर रूप ले लेती है। दिवाली तो मात्र इस समस्या को और बढ़ा देती है, जिस पर जनता और प्रशासन को मिलकर ध्यान देना चाहिए।

दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए न केवल पटाखों के उपयोग को नियंत्रित करना आवश्यक है, बल्कि अन्य स्रोतों जैसे गाड़ियों के धुएं, फैक्ट्रियों के उत्सर्जन को भी सीमित करना बहुत जरूरी है। इसके लिए सरकार को सख्त नियम लागू करने चाहिए और लोगों को भी जागरूक होना चाहिए कि यह उनके और उनके बच्चों के भविष्य के लिए कितना महत्वपूर्ण है।

यह समय है कि दिल्लीवासी और प्रशासनिक तंत्र मिलकर एक ठोस योजना तैयार करें, जहां न केवल दिवाली बल्कि पूरे साल प्रदूषण पर नियन्त्रण कसा जा सके। समाज के हर हिस्से को इस मुद्दे के महत्व को समझना होगा और सक्रिय रूप से योगदान देना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियाँ एक स्वस्थ और स्वच्छ वातावरण में सांस ले सकें।

द्वारा लिखित Pari sebt

मैं एक समाचार विशेषज्ञ हूँ और मुझे भारत में दैनिक समाचार संबंधित विषयों पर लिखना पसंद है।

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utkarsh shukla

भाई ये दिवाली का धुआँ तो बस एक बहाना है! हर दिन दिल्ली की हवा में जहर है, पटाखे तो सिर्फ़ इसे दिखाने आ गए। अगर आपको लगता है ये सिर्फ़ दिवाली की गलती है, तो आप जाग जाइए! गाड़ियाँ, फैक्ट्रियाँ, बिजली के प्लांट, खेतों की आग - सब इस विष का हिस्सा हैं। अब तक तो हम सब बस बैठे रहे, अब उठो और आवाज़ उठाओ!

Amit Kashyap

अरे यार ये सब लोग बस बाहर रहने के लिए बहाने बना रहे हैं! भारत में दिवाली बिना पटाखों के क्या है? अमेरिका में तो लोग बर्फ घूमते हैं, हम तो अपनी संस्कृति को जिंदा रख रहे हैं। अगर हवा खराब है तो मास्क पहन लो, डॉक्टर ने भी कहा है। ये सब बातें बस बाहरी देशों को खुश करने के लिए हैं।

mala Syari

मैं तो बस देख रही थी कि दिल्ली के लोग अभी भी लाइव स्ट्रीम पर पटाखे फोड़ रहे हैं - जैसे वो अपनी अस्तित्व की पुष्टि कर रहे हों। ये दिवाली का त्योहार नहीं, ये एक अपराध है। मैंने देखा एक बच्चा जो चार साल का है, उसके फेफड़े की रिपोर्ट देखी थी - ये बच्चे अपने जीवन के पहले सालों में ही एक जीवित विषाक्त जगह में पल रहे हैं। ये नहीं हो सकता।

Kishore Pandey

दिल्ली के वातावरणीय स्थिति का विश्लेषण करने पर स्पष्ट होता है कि पटाखों का योगदान केवल 12-15% है। अधिकांश प्रदूषण वाहनों, औद्योगिक उत्सर्जन और खेतों में खलिहान जलाने से आता है। इसलिए, केवल पटाखों पर ध्यान केंद्रित करना एक असंगठित और अत्यधिक साधारणीकृत दृष्टिकोण है। नीति निर्माताओं को समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

Atanu Pan

मैं दिल्ली में रहता हूँ। हर साल दिवाली के बाद बार-बार बुखार आता है। लेकिन अगर मैं अपने बच्चे के लिए एक बार भी पटाखा नहीं फोड़ता, तो मेरे भाई-बहन कहते हैं कि मैं बेइज़्ज़ती कर रहा हूँ। ये तो बस दबाव है। कोई नहीं सुनता।

Pankaj Sarin

पटाखे ही बुरे हैं या हम सब जिंदा रहने के लिए बेहद अजीब हैं? मैंने एक बार एक दिवाली पर गाँव जाकर देखा - वहाँ तो बच्चे बिना पटाखे के रंगों से खेल रहे थे। शायद हम जो बातें बुरी कहते हैं, वो सिर्फ़ हमारी अपनी बेचैनी है। बस एक बार अपने दिल से पूछो - क्या तुम असली खुशी चाहते हो या सिर्फ़ शोर?

Mahesh Chavda

मैं नहीं कह रहा कि पटाखे अच्छे हैं। मैं बस यह कह रहा हूँ कि जिन लोगों के घरों में एयर प्यूरीफायर नहीं है, वो क्या करें? आप लोग तो बस अपने घरों में बैठकर ट्वीट करते हैं। हम जो लोग रोज़ बाहर निकलते हैं, हमें तो बस एक मास्क और एक दिल की जरूरत है।

Sakshi Mishra

क्या हमने कभी सोचा है कि दिवाली का उत्सव, जो एक बार आत्मा की ज्योति को जगाने के लिए था, अब हमारी आत्मा को कैसे दबा रहा है? हम बाहर की रोशनी को इतना ज़ोर से बढ़ा रहे हैं कि अंदर की रोशनी बुझ गई है। शायद ये दिवाली का सच है - नहीं धुएँ का, बल्कि अंतर्मन की अंधेरी दीवारों का।

Radhakrishna Buddha

अरे भाई, मैंने देखा एक लड़का अपने दादा के साथ एक बहुत छोटा सा पटाखा फोड़ रहा था - उसकी आँखों में चमक थी। अगर हम इस चमक को मार देंगे, तो हम क्या बचाएंगे? शायद ये नहीं कि हमें पटाखे बंद करने हैं, बल्कि हमें उन्हें अपने तरीके से जीना है। कम, लेकिन भावनात्मक।

Govind Ghilothia

हमारी संस्कृति में आत्मा की ज्योति को जलाने का अर्थ है - अंधेरे का विजय। लेकिन आज हम इस ज्योति को बाहरी धुएँ में बदल रहे हैं। यह एक विरोधाभास है। दिवाली का अर्थ बाहरी रोशनी नहीं, बल्कि अंतर्मन की शुद्धता है। यदि हम इस अर्थ को भूल गए, तो त्योहार बस एक आयोजन बन जाता है।

Sukanta Baidya

ये सब लोग जो बोल रहे हैं, उनके घरों में तो एयर प्यूरीफायर है और बच्चे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहे हैं। मैं जिस लाइन में रहता हूँ, वहाँ तो हर घर में एक टैंकर भरा बर्तन है - पानी के लिए नहीं, बल्कि दिवाली के लिए। ये तो बस एक अलग दुनिया है।

Adrija Mohakul

मैं एक नर्स हूँ और दिल्ली के अस्पताल में काम करती हूँ। दिवाली के बाद हर साल हमें बच्चों के लिए एस्थमा के दवाओं की जरूरत पड़ती है। हमारे पास दवाएं हैं, लेकिन अगर हम ये बच्चे बचा लें, तो शायद हम अपने भविष्य को भी बचा लेंगे। एक छोटा बदलाव - बिना पटाखों के दिवाली - बहुत कुछ बदल सकता है।

Dhananjay Khodankar

मैंने इस साल दिवाली पर कुछ भी नहीं फोड़ा। मैं बस अपने बच्चे के साथ आसमान को देख रहा था - बिना धुएँ के। उसने कहा - दादा, तारे आज बहुत ज्यादा चमक रहे हैं। मैंने सोचा - शायद यही हमारा वास्तविक दिवाली है। बिना शोर के। बिना धुएँ के। बस एक बच्चे की आँखों में चमक।