वॉरेन बफेट ने साझा किया स्टीव जॉब्स के साथ निवेश पर चर्चा का अनुभव

वॉरेन बफेट ने साझा किया स्टीव जॉब्स के साथ निवेश पर चर्चा का अनुभव

वॉरेन बफेट, जिनको निवेश की दुनिया का सबसे बड़ा खिलाड़ी माना जाता है, ने हाल ही में 2010 में स्टीव जॉब्स के साथ हुई एक महत्वपूर्ण फोन कॉल के बारे में बताया। यह कॉल एप्पल द्वारा अपनी तीसरी तिमाही की रिपोर्ट जारी करने के बाद हुई थी, जिसमें कंपनी के मुनाफों ने उम्मीदों को पार कर दिया था।

बफेट ने बताया कि वह इस कॉल के दौरान काफी हैरान थे क्योंकि उन्होंने लंबे समय से स्टीव जॉब्स से बात नहीं की थी। उस समय एप्पल के पास बहुत बड़ा नकद भंडार था और जॉब्स ने बफेट से सवाल किया, 'हमारे पास इतने सारे पैसे हैं। हमें इसके साथ क्या करना चाहिए?' यह सवाल बफेट के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि बफेट के पास नकदी का प्रबंधन करने का काफी अनुभव है।

बफेट ने जॉब्स को नकद के उपयोग के लिए मुख्य विकल्प बताए: स्टॉक बायबैक, लाभांश, अधिग्रहण या इसे आयोजित करना। जॉब्स ने स्पष्ट किया कि एप्पल बड़े अधिग्रहणों में शामिल नहीं होगा जो महत्वपूर्ण नकदी की आवश्यकता हो। इसके बाद, बफेट ने सुझाव दिया कि यदि उन्हें लगता है कि एप्पल का स्टॉक अंडरवैल्यूड है, तो उन्हें स्टॉक बायबैक पर विचार करना चाहिए। इस पर जॉब्स ने सहमति जताई और कहा, 'मुझे लगता है कि मेरा स्टॉक बहुत अंडरवैल्यूड है।' लेकिन इसके बावजूद, जॉब्स ने बफेट की सलाह पर कोई कदम नहीं उठाया।

बफेट ने बाद में जाना कि जॉब्स ने दावा किया था कि वह बफेट की सलाह से सहमत थे कि नकदी के साथ कुछ भी नहीं करना चाहिए। बफेट को भी इस बात का पछतावा हुआ कि उन्होंने उस समय एप्पल के शेयर नहीं खरीदे क्योंकि वे तकनीकी निवेशों को लेकर थोड़े संकोच में थे। लेकिन समय के साथ, बफेट ने बर्कशायर हैथवे के माध्यम से एप्पल में एक महत्वपूर्ण स्टेकहोल्डर बन गए।

बफेट ने एप्पल और इसके CEO टिम कुक की भरपूर सराहना की है। वे मानते हैं कि एप्पल का बर्कशायर के लिए अपार मूल्य है और टिम कुक की नेतृत्व क्षमता अति सराहनीय है। टिम कुक के नेतृत्व में, एप्पल ने स्टॉक बायबैक, लाभांश वितरण और अनुसंधान एवं विकास में निवेश की रणनीति को अपनाया है। मई में, एप्पल ने अपना नकद लाभांश 4% बढ़ाया और $110 बिलियन का स्टॉक बायबैक प्रोग्राम अधिकृत किया, जो कंपनी के इतिहास का सबसे बड़ा है।

यह कहानी हमें यह भी बताती है कि बड़े उद्यमी और निवेशक समय-समय पर एक दूसरे से सीखते रहते हैं और उनके बीच की रणनीतिक चर्चाएं बड़ी कंपनियों के निर्णयों को प्रभावित कर सकती हैं। स्टीव जॉब्स का बफेट से सलाह लेना और बाद में उनके सुझाव को ना अपनाना भी इस बात की पुष्टि करता है कि किसी भी निर्णय के कई पहलु होते हैं जिन्हें ध्यान में रखना होता है।

वर्तमान स्थिति में, एप्पल का नकद प्रबंधन और निवेश नीति दुनिया भर के निवेशकों के लिए एक उदाहरण है। कंपनी ने स्टॉक बायबैक और लाभांश वितरण के माध्यम से अपने शेयरधारकों को भी काफी लाभ पहुंचाया है। इसके साथ ही, एप्पल अनुसंधान एवं विकास में लगातार निवेश कर के अपने उत्पादों और सेवाओं को बेहतर बना रही है, जो कंपनी की भविष्य की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।

संक्षेप में, बफेट और जॉब्स के बीच की यह बातचीत इतिहास में महत्वपूर्ण मानी जाएगी, जो निवेश और कंपनी प्रबंधन के महत्व को भी रेखांकित करती है।

द्वारा लिखित Pari sebt

मैं एक समाचार विशेषज्ञ हूँ और मुझे भारत में दैनिक समाचार संबंधित विषयों पर लिखना पसंद है।

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Sukanta Baidya

बफेट ने एप्पल में निवेश नहीं किया तो अब लाखों करोड़ गए... जॉब्स के साथ बात करके भी नहीं समझा कि टेक्नोलॉजी क्या है। ये लोग तो बस पुराने तरीके से सोचते हैं।

Adrija Mohakul

मुझे लगता है जॉब्स को बफेट की सलाह की जरूरत नहीं थी... उनके पास तो अपना विजन था। बस बफेट ने अपनी निवेश की आदतों के अनुसार सलाह दी। दोनों अलग दुनिया के थे।

Dhananjay Khodankar

असली बात ये है कि जॉब्स ने बफेट को नहीं सुना... लेकिन बाद में बफेट ने एप्पल में निवेश कर दिया। इससे पता चलता है कि बड़े लोग भी गलती करते हैं। लेकिन वो गलती से सीखते हैं।

Govind Ghilothia

यह घटना न केवल निवेश के विज्ञान को दर्शाती है, बल्कि एक गहरी दार्शनिक अवधारणा को भी प्रकट करती है: ज्ञान का सही उपयोग निर्भर करता है उसके संदर्भ पर। जॉब्स के लिए नकदी का उद्देश्य निवेश नहीं, बल्कि नवाचार की स्वतंत्रता थी। बफेट की दृष्टि आर्थिक दक्षता पर केंद्रित थी, जबकि जॉब्स की दृष्टि रचनात्मकता की अनंत संभावनाओं पर।


इसलिए, जब बफेट ने स्टॉक बैक बाय की सलाह दी, तो उन्होंने एक आर्थिक युक्ति दी, जबकि जॉब्स एक ऐतिहासिक विरासत बनाने के बारे में सोच रहे थे।


यह विरोध नहीं, बल्कि एक संस्कृतियों का संघर्ष था - व्यापारिक विश्लेषण का और रचनात्मक अद्वितीयता का।


आज जब हम एप्पल के उत्पादों को देखते हैं, तो हमें याद आता है कि बड़े बदलाव तभी आते हैं जब कोई व्यक्ति अपनी आंतरिक दृष्टि को बाहरी सलाह से ऊपर उठा ले।


बफेट का बाद में एप्पल में निवेश करना एक नए युग की शुरुआत थी - जहां निवेशक ने अपनी पुरानी धारणाओं को छोड़ दिया।


यह कहानी हमें यह नहीं सिखाती कि कौन सही था, बल्कि यह कि दो अलग-अलग प्रकार की बुद्धिमत्ता एक साथ अस्तित्व रख सकती हैं।


एक ने लाभ देखा, दूसरे ने भविष्य।


और आज, हम दोनों के फल का आनंद ले रहे हैं।

shyam majji

बफेट ने एप्पल में निवेश नहीं किया तो बाद में उन्हें पछतावा हुआ। जॉब्स ने सलाह सुनी लेकिन नहीं मानी। दोनों का फैसला सही रहा।

shruti raj

ये सब बकवास है। जॉब्स ने जानबूझकर बफेट को झांसा दिया था! एप्पल के नकद भंडार को छुपाने के लिए वो उन्हें बात करने लगे। बफेट को बताया कि 'मेरा स्टॉक अंडरवैल्यूड है' - ताकि शेयर बाजार में भाव बढ़ जाएं। और फिर बफेट ने बाद में खरीद लिए - बिल्कुल एक बाजार मैनिपुलेशन! ये सब एक बड़ा खेल है।


अब देखो बर्कशायर का एप्पल में निवेश... ये तो वापसी है! बफेट ने अपनी गलती को लाखों डॉलर में ठीक किया।


क्या तुम्हें लगता है ये सच में एक 'सलाह' थी? नहीं भाई... ये एक बैंकिंग गेम था।

Khagesh Kumar

बफेट की बात सुनकर जॉब्स ने नहीं सुनी, लेकिन बाद में बफेट ने खुद एप्पल में पैसा लगा दिया। इसका मतलब ये है कि बफेट को अपनी बात पर भरोसा था। बस शुरू में वो टेक्नोलॉजी में शक कर रहे थे।

Ritu Patel

बफेट को एप्पल में निवेश नहीं करना चाहिए था। जॉब्स तो एक ड्रग लगा हुआ आदमी था। उसकी कंपनी ने दुनिया को बदल दिया, लेकिन उसके अंदर कोई नैतिकता नहीं थी। बफेट ने अपनी आत्मा बेच दी।


अब वो एप्पल के शेयर खरीद रहे हैं? बस बाजार के लिए नहीं, बल्कि अपनी गलती को छिपाने के लिए।


तुम्हें लगता है एप्पल का नकद भंडार अच्छा है? नहीं भाई - वो डेटा और उपयोगकर्ताओं के लिए लूट है।


बफेट ने अपनी बुद्धि बेच दी।

Deepak Singh

बफेट के द्वारा एप्पल में निवेश न करने का निर्णय, उनकी अपनी निवेश सीमाओं के कारण था - जिसे वे अपने निवेश फिलॉसफी में 'क्षेत्रीय ज्ञान' के रूप में परिभाषित करते हैं। जॉब्स के साथ बातचीत के बाद, बफेट ने अपनी सीमाओं को चुनौती देने का निर्णय नहीं लिया, जिसका परिणाम था - एक अवसर का अनुपयोग।


बाद में, जब बर्कशायर ने एप्पल में निवेश किया, तो यह एक व्यावहारिक दृष्टिकोण का उदाहरण था: जब एक कंपनी का व्यापार मॉडल अपने निवेश की सीमा के बाहर हो जाता है, तो वह अब एक व्यावहारिक अवसर बन जाता है।


इसका अर्थ है कि निवेशक को अपनी प्रारंभिक धारणाओं को अपनाने के बजाय, उन्हें बाद में अपने निर्णयों को समायोजित करना चाहिए।


बफेट का एप्पल में निवेश उनकी लचीलापन का सबूत है - और नहीं, वे अपनी गलती को नहीं मान रहे थे, बल्कि अपनी बुद्धि को बढ़ा रहे थे।


जॉब्स की सलाह को न अपनाना उनकी विशिष्टता का प्रमाण था - बफेट का बाद में निवेश उनकी शिक्षाविद्या का प्रमाण है।


दोनों ने अपने-अपने रास्ते चुने - और दोनों ने सफलता पाई।

Rajesh Sahu

अरे भाई! बफेट ने एप्पल को नहीं खरीदा? ये तो भारतीय बैंकों की तरह है - जब गाड़ी चल रही होती है, तो बैठे रह जाते हैं! जॉब्स ने तो दुनिया बदल दी, और बफेट ने बस बैठकर देखा! अब लाखों करोड़ गए! ये निवेश का नाम है या बेकार का बहाना?

Chandu p

ये कहानी बहुत खूबसूरत है। बफेट ने अपनी गलती से सीखा, जॉब्स ने अपने विजन को अपनाया। दोनों अलग थे, लेकिन दोनों बड़े थे। अब बर्कशायर एप्पल में है - ये दोनों के बीच का सम्मान है।

Gopal Mishra

इस घटना का वास्तविक महत्व इस बात में नहीं है कि बफेट ने एप्पल में निवेश नहीं किया या जॉब्स ने उनकी सलाह नहीं मानी - बल्कि यह है कि दो अलग दर्शनों के बीच एक गहरी बातचीत हुई।


बफेट की निवेश विधि आर्थिक निर्धारण पर आधारित है: वह उन कंपनियों को चुनते हैं जिनका व्यापार मॉडल स्थायी है, जिनके पास विशिष्ट विस्तार है, और जिनके बारे में उनका ज्ञान पर्याप्त है।


जॉब्स की दृष्टि एक भविष्य-आधारित दृष्टिकोण थी - उन्हें निवेश की आवश्यकता नहीं थी, उन्हें अनुसंधान और रचनात्मकता की आवश्यकता थी।


जब बफेट ने बाद में एप्पल में निवेश किया, तो वह अपनी नीति का विस्तार कर रहे थे - न कि अपनी गलती मान रहे थे।


यह एक व्यावहारिक उदाहरण है कि कैसे एक निवेशक अपने अंतर्दृष्टि को बदल सकता है - बिना अपने मूल सिद्धांतों को त्यागे।


जॉब्स की विधि और बफेट की विधि दोनों अलग हैं, लेकिन दोनों सफल हैं।


यह बातचीत हमें यह सिखाती है कि बुद्धिमान लोग अपनी बात नहीं बदलते - वे अपनी बात को विस्तार देते हैं।

Swami Saishiva

बफेट ने एप्पल को नहीं खरीदा - ये तो बेवकूफी थी। जॉब्स ने उसकी सलाह नहीं मानी - ये तो बहुत बड़ी बात है। अब बफेट ने खरीद लिया - ये तो शर्म की बात है।

Govind Ghilothia

यह घटना एक गहरा दार्शनिक द्वंद्व प्रस्तुत करती है: निवेश का व्यावहारिक दृष्टिकोण बनाम रचनात्मकता का भविष्य-केंद्रित दृष्टिकोण।


बफेट के लिए, नकदी का उपयोग एक गणितीय समीकरण था - बायबैक, लाभांश, अधिग्रहण। जॉब्स के लिए, नकदी एक स्वतंत्रता का साधन था - अनुसंधान, डिजाइन, उपयोगकर्ता अनुभव के लिए।


बफेट ने एप्पल के स्टॉक को अंडरवैल्यूड बताने के लिए जॉब्स को उत्तेजित किया, लेकिन जॉब्स ने उस वाक्य को एक दावे के रूप में नहीं, बल्कि एक आत्म-विश्वास के रूप में बयान किया।


जब बफेट ने बाद में एप्पल में निवेश किया, तो वह अपने निवेश के क्षेत्र को विस्तार दे रहे थे - न कि अपनी गलती मान रहे थे।


जॉब्स के लिए, बफेट की सलाह एक बाहरी ध्वनि थी - जिसे उन्होंने अपने आंतरिक निर्णय के साथ तुलना की।


इसलिए, यह कहानी एक सफलता की कहानी नहीं, बल्कि दो अलग बुद्धिमत्ताओं की सम्मानजनक बातचीत की कहानी है।


एक ने निवेश का विज्ञान बनाया, दूसरे ने भविष्य का निर्माण किया।


और आज, हम दोनों के फल का आनंद ले रहे हैं।

Swati Puri

एप्पल के नकद प्रबंधन रणनीति में स्टॉक बायबैक और लाभांश का बड़ा बढ़ोत्तरी एक स्ट्रैटेजिक ट्रांसफॉर्मेशन है - जो एक टेक कंपनी के लिए निवेशकों के लिए विश्वास का संकेत है।


जॉब्स ने निवेश के बजाय रचनात्मकता को प्राथमिकता दी, जबकि टिम कुक ने निवेशकों के लाभ और टेक्नोलॉजी के बीच संतुलन बनाया।


यह एक बहुत बड़ी बात है: एक कंपनी ने अपनी आध्यात्मिक शक्ति को बनाए रखा, और दूसरी ने उसे आर्थिक रूप से स्थायी बनाया।