अधिग्रहण – समझें क्या है और क्यों महत्वपूर्ण

आपने कभी खबरों में बड़ी कंपनी ने किसी छोटी कंपनी को खरीदा देखा होगा। इसे हम अधिग्रहण कहते हैं। सरल शब्दों में, एक बिज़नेस दूसरे बिज़नेस की पूरी या हिस्से वाली संपत्ति खरीद लेता है। यह सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि ब्रांड, तकनीक और कस्टमर बेस भी हो सकता है। आजकल स्टार्ट‑अप से लेकर बड़े कॉरपोरेशन तक सभी इस रास्ते पर चलते हैं क्योंकि इससे तेजी से बढ़ना आसान हो जाता है।

अधिग्रहण के प्रकार

सबसे पहले जानते हैं कि अधिग्रहण दो मुख्य रूपों में बँटा है – मैत्रीपूर्ण (Friendly) और प्रतिरोधात्मक (Hostile)। मैत्रीपूर्ण में दोनों कंपनियां मिलकर समझौता करती हैं, डील पर दस्तखत होते हैं और शेयरहोल्डर्स को लाभ मिलता है। वहीं प्रतिरोधात्मक अधिग्रहण में खरीदार बिना लक्ष्य कंपनी की मंजूरी के सीधे शेयर खरीद लेता है या कोर्ट का सहारा लेता है। दूसरा प्रकार कम ही होता है क्योंकि यह अक्सर विवाद पैदा करता है।

एक और वर्गीकरण ‘हॉरिज़ॉन्टल’ और ‘वर्टिकल’ अधिग्रहण का है। हॉरिज़ॉन्टल में समान उद्योग की कंपनियां मिलती हैं, जैसे दो मोबाइल फ़ोन निर्माता एक-दूसरे को खरीदते हैं। वर्टिकल में सप्लाई चेन के अलग‑अलग स्तर वाली कंपनियां जुड़ती हैं, जैसे एप्पल ने अपने चिप निर्माण कंपनी को खरीदा। दोनों ही स्ट्रेटेजिक होते हैं, पर लक्ष्य अलग रहता है – मार्केट शेयर बढ़ाना या लागत घटाना।

अधिग्रहण का प्रभाव

जब कोई बड़ी कंपनी अधिग्रहण करती है, तो कई चीज़ें बदल सकती हैं। सबसे पहले कर्मचारियों को नई संस्कृति और प्रक्रियाओं के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है। कभी‑कभी डुप्लिकेशन हटाने के लिए छंटनी भी होती है, जिससे नौकरी का खतरा बढ़ सकता है। दूसरी ओर, अधिग्रहण से नई प्रोडक्ट लाइन या तकनीक जल्दी मिल जाती है, जिससे ग्राहक को बेहतर विकल्प मिलते हैं।

स्टॉक मार्केट में भी इसका असर देखना आसान है। अधिग्रहित होने वाली कंपनी के शेयर अक्सर ऊपर उठते हैं क्योंकि खरीदार ने प्रीमियम दिया होता है। वहीं खरीदने वाली कंपनी के शेयर में अस्थायी गिरावट आ सकती है, क्योंकि निवेशक डील की लागत को लेकर सावधानी बरतते हैं। अगर डील सफल रहती है तो दोनों कंपनियों का मूल्य समय के साथ बढ़ता है।

अंत में यह समझना जरूरी है कि अधिग्रहण हमेशा जीत‑हार नहीं होती। सही कारण, उचित मूल्यांकन और सांस्कृतिक फिट होना चाहिए, तभी दीर्घकालिक लाभ मिलता है। अगर आप निवेशक हैं या बिज़नेस चला रहे हैं, तो अधिग्रहण की खबरों को ध्यान से देखिए, क्योंकि यही आपके अगले कदम का दिशा-निर्देश बन सकता है।

कोओ ने विफल अधिग्रहण वार्ताओं के बाद बंद किया सेवा, भारतीय सोशल मीडिया का नया अध्याय

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माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफार्म कोओ ने अधिग्रहण वार्ताओं के विफल होने के बाद अपनी सेवा को बंद करने का निर्णय लिया है। भारतीय निर्मित इस प्लेटफार्म की शुरुआत 2020 में हुई थी और इसे कभी भारत में ट्विटर (अब एक्स) का विकल्प माना जाता था। हालांकि, बड़े इंटरनेट कंपनियों के साथ संभावित साझेदारी की वार्ता विफल हो गई। कोओ के संस्थापक के अनुसार, इसके पीछे फंडिंग विंटर और बाजार के मोड का भी योगदान है।

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जुल॰ 3, 2024 द्वारा Pari sebt