जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव: उमर अब्दुल्ला ने गंदरबल के बाद बडगाम से भी भरा नामांकन

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव: उमर अब्दुल्ला ने गंदरबल के बाद बडगाम से भी भरा नामांकन

नेशनल कांफ्रेंस की उम्मीदवारी

नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में गंदरबल के बाद बडगाम से भी नामांकन पत्र दाखिल किए हैं। गंदरबल से नामांकन 4 सितम्बर को किया गया था जबकि बडगाम से 5 सितम्बर को। उमर अब्दुल्ला के इस फैसले ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है और उनकी पार्टी की ताकत को फिर से साबित करने की कोशिश की है। उमर का कहना है कि बडगाम से नामांकन दाखिल करना नेशनल कांफ्रेंस की मजबूती का संकेत है और एनसी व कांग्रेस की साझेदारी इन चुनावों में जीत हासिल करेगी।

दोहरे नामांकन पर प्रतिक्रिया

उमर अब्दुल्ला के दोहरे नामांकन के फैसले पर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं। उनके प्रतिद्वंद्वियों का कहना है कि यह फैसला उनकी पार्टी में आत्मविश्वास की कमी को दर्शाता है। गंदरबल में उमर को स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं के असंतोष का सामना करना पड़ रहा है, जो एक स्थानीय उम्मीदवार चाहते हैं। इसके अलावा, उन्हें अन्य प्रतिस्पर्धियों जैसे पूर्व कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष शेख आशिक और कैद में बंद अलगाववादी मौलवी सरजन अहमद बारकती से कड़ी टक्कर मिल रही है।

प्रथम दृष्टि में बदलाव

प्रथम दृष्टि में बदलाव

गौरतलब है कि उमर अब्दुल्ला ने पहले ऐलान किया था कि जब तक जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल नहीं होता, वह चुनावों से बाहर रहेंगे। बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि चुनाव से बाहर रहना एक भूल होती। यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि 2019 में धारा 370 के हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद यह पहले चुनावों का आयोजन हो रहा है।

चुनावी रणनीति और लक्ष्य

एनसी और कांग्रेस की चल रही चुनावी कैम्पेन का प्रमुख लक्ष्य जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा पुनःस्थापित करना है, जो कि कश्मीर और जम्मू दोनों ही इलाकों की जनता की मांग है। उमर अब्दुल्ला की यह चुनावी रणनीति उनकी पार्टी को मजबूत करने और आम जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने की दिशा में एक कदम है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि एनसी और कांग्रेस जनता के हितों के लिए समर्पित हैं और पिछले पांच वर्षों में लिए गए नुकसानदेह निर्णयों का खुलासा करेंगे।

उम्मीदों के बीच का संतुलन

उम्मीदों के बीच का संतुलन

उमर के अनुसार, चुनाव में दोहरी भागीदारी यह दिखाने के लिए कि नेशनल कांफ्रेंस और उसके सहयोगी कितने मजबूत हैं। इस चुनौतीपूर्ण समय में, उनका मानना है कि जनता का समर्थन उन्हें जीत की ओर अग्रसर करेगा। हालांकि, गंदरबल में स्थानीय उम्मीदवार के समर्थकों से असंतोष उमर के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।

चुनावों का महत्व

यह चुनाव जम्मू-कश्मीर की राजनीति और भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। राज्य के लोगों को राज्य के दर्जे की बहाली की आशा है। उमर अब्दुल्ला ने बड़े आत्मविश्वास के साथ अपनी पार्टी की ताकत दिखाने वाला कदम उठाया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस मिलकर राज्य की जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने का संकल्प लिए हुए हैं।

असम में गठबंधन, विपक्ष का विरोध, स्थानीय मुद्दे तथा उमर अब्दुल्ला की यह नई रणनीति – यह सब जम्मू-कश्मीर के आगामी चुनावों को और अधिक रोचक और गंभीर बना रहे हैं। अब देखना यह है कि क्या उमर और उनकी पार्टी जनता की उम्मीदों पर खरा उतर पाएंगे या नहीं।

द्वारा लिखित Pari sebt

मैं एक समाचार विशेषज्ञ हूँ और मुझे भारत में दैनिक समाचार संबंधित विषयों पर लिखना पसंद है।

Akshay Patel

ये सब नामांकन का खेल बस दिखावा है। असली मुद्दे तो ये हैं कि यहाँ की जनता को रोज़ का खाना कैसे मिलेगा? राजनीति बस नाम लेकर घूम रही है।

Raveena Elizabeth Ravindran

umr abdulla ne phir se same old tactic lagaya... kya baat hai yeh? ek jagah se hi contest kro, do jagah se kyun? sab janta hai ye sab bas publicity hai.

Krishnan Kannan

मुझे लगता है ये दोनों सीटों पर नामांकन एक स्ट्रैटेजिक मूव है। अगर एक में हार गए तो दूसरी से बच सकते हैं। लेकिन सवाल ये है कि लोगों को ये बात समझ आएगी या नहीं? गंदरबल में तो लोग लोकल कैंडिडेट चाहते हैं।

Dev Toll

देखो, ये दोहरा नामांकन नया नहीं है। पिछले चुनावों में भी ऐसा हुआ था। लेकिन अब लोग इसके बारे में ज्यादा बात नहीं कर रहे। शायद थक गए हैं।

utkarsh shukla

अरे भाई! ये बड़ा कदम है! उमर अब्दुल्ला ने अपनी पार्टी को दुनिया को दिखा दिया कि वो डरते नहीं! ये जीत की ओर एक बड़ा कदम है! जय नेशनल कांफ्रेंस! जय कश्मीर!

Amit Kashyap

ये सब नामांकन बस दिखावा है, असली चुनौती तो अब है कि क्या वो जीत पाएंगे? अगर नहीं तो ये सब बकवास रह जाएगा। और धारा 370 वापस नहीं आएगा।

mala Syari

क्या ये एक बार फिर से एक बड़े राजनीतिक नाटक की शुरुआत है? जो लोग अपने आप को लीडर समझते हैं, वो हमेशा अपने नाम को बढ़ाने के लिए दो जगह नामांकित होते हैं। लेकिन जनता की आवाज़ क्या है? वो कहाँ है?

Kishore Pandey

राजनीतिक नामांकन के संदर्भ में एक व्यक्ति के दो निर्वाचन क्षेत्रों में नामांकन अवैध नहीं है, लेकिन यह नैतिक रूप से संदिग्ध है। इसका उद्देश्य जनता को भ्रमित करना है, न कि उनकी सेवा करना।

Kamal Gulati

ये सब एक बड़ा सवाल है: क्या हम अपने नेताओं को वोट देते हैं या उनके नाम को? उमर अब्दुल्ला एक नाम है, लेकिन क्या वो एक आशा है? या बस एक राजनीतिक चिह्न?

Atanu Pan

मुझे लगता है अगर वो गंदरबल में असंतोष है, तो बडगाम में भी वैसा ही होगा। ये सब बस एक बड़ी जाल है।

Pankaj Sarin

do seat do vote do drama do money do nothing... same old story. koi nahi sunta kya chal raha hai. bas naam likh do aur chale jao

Mahesh Chavda

यह एक नाटक है, जिसमें नेता अपने नाम को बढ़ाने के लिए अपनी पार्टी के अधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं। यह लोगों के विश्वास को नष्ट कर रहा है।

Sakshi Mishra

क्या हम वास्तव में एक राज्य के राजनीतिक भविष्य को एक व्यक्ति के दो नामांकनों पर निर्भर कर रहे हैं? क्या यही है लोकतंत्र का अर्थ? क्या जनता की आवाज़ के बजाय, हम केवल एक नाम के आसपास घूम रहे हैं?

Radhakrishna Buddha

अरे भाई, ये तो बस एक बड़ा नाटक है! दो जगह नामांकन? ये तो जीतने की बजाय बचने की रणनीति है! लेकिन ये बात तो हर कोई जानता है, फिर भी हम इसे देखते रहते हैं... शायद हम इसे पसंद करते हैं!