जून 2025 में अमेरिकी-ईरानी टकराव: खाड़ी देशों की सुरक्षा पर असर

जब डोनाल्ड ट्रम्प, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति संयुक्त राज्य ने 13 जून 2025 को इज़राइल‑ईरान तनाव को सीधे अमेरिकी सैन्य कार्रवाई में बदल दिया, तो खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के शासकों को अपने ‘न्यूट्रल’ भूमिका की असली कीमत चुकानी पड़ी। अमेरिकी-ईरानी संघर्ष ने न केवल सियॉनियों और बेहोशियों को, बल्कि सऊदी अरब, क़तर, और यूएई जैसी सदी‑पुरानी गठबंधनों को भी हिला कर रख दिया।
पृष्ठभूमि एवं संघर्ष की शुरुआत
2023 ऑक्टובר 7 को हमास द्वारा इज़राइल पर बड़े पैमाने पर हमले के बाद मध्य‑पूर्व के तनाव का धांसू ज्वाला 2025 जून में फिर से प्रज्वलित हो गया। 15 जून को ईरान ने उत्तरी इज़राइल के एक आवासीय इमारत पर तोपखाने से हमला किया, जिसे इज़राइल ने तुरंत प्रतिशोधी हवाई अभियान कहा। इस बीच, GCC देशों ने अपने कूटनीतिक ‘नॉर्मलाइज़ेशन’ को इरान के साथ आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन असली मैदान पर उनका कोई हाथ नहीं था।
जैसे ही अली खामेनी, ईरान के सर्वोच्च नेता ने अपना प्रतिउत्तर तैयार किया, अमेरिकी एयरक्राफ्ट ने 21 जून को नटांज़, इस्फ़ाहान और फ़र्डोव में स्थित तीन मुख्य परमाणु सुविधाओं को बंकर‑बस्टर बमों से निशाना बनाया। अमेरिकी सेना ने इस कार्रवाई को ‘ईरान की परमाणु प्रगति को महीनों में धीमा करने वाला’ कहा, जबकि अंतर्राष्ट्रीय एटॉमिक ऊर्जा एजेंसी ने संकेत दिया कि यह नुकसान केवल कुछ महीनों के उत्पादन को ही प्रभावित करेगा।
अमेरिकी हवाई हमले और ईरानी प्रतिक्रिया
ऊर्जावान बमबारी के दो दिन बाद, 23 जून को ईरान ने लगभग दस बैलिस्टिक मिसाइलें अल‑उदीद एयर बेस (Doha, Qatar) की ओर लॉन्च की। इस बेस को संयुक्त राज्य का सबसे बड़ा मध्य‑पूर्वी सैन्य ठिकाना माना जाता है। कोई मारपीट सैद्धांतिक रूप से नहीं हुई, पर इस चोरी‑सुरक्षा उल्लंघन ने क़तर के इमीर शेख तमिम बिन हमाद अल थानी को हैरान कर दिया। उन्होंने तुरंत आधार को ‘अपरिवर्तनीय जोखिम’ बताकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सुरक्षा आश्वासन की माँग की।
उसी शाम, डोनाल्ड ट्रम्प ने 24 जून को ‘अस्थिर शांति’ का एलान किया, पर दोनों पक्षों ने फिर भी छोटे‑छोटे बल प्रहार जारी रखे।

खाड़ी देशों की सुरक्षा दुविधा
सऊदी अरब के किंग सलमान बिन अब्दुलअज़ीज अल सौद, यूएई के शेख मोहम्मद बिन ज़येद अल नहयान, और क़तर के शेख तमिम ने बयानों में ईरान के हमले की निंदा की, पर उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि पिछले महीनों में उन्होंने ईरान के साथ आर्थिक और कूटनीतिक समझौते करने की कोशिश की थी। ट्रम्प की 2025 मई की GCC यात्रा ने इस आशा को टूटते देखा, जब उन्होंने ‘ईरान ने सीमित हमला किया, वह बहुत ही दयालु था’ टिप्पणी की, जो 2019 में सऊदी तेल सुविधाओं पर ईरान के हमले के बाद की हिसाब‑किताब से भी भिन्न थी।
इस उलझन के कारण GCC ने सुरक्षा साझेदारियों को फिर से संतुलित करने की पहल की। पाकिस्तान, तुर्की और इजिप्ट के साथ मिलकर शस्त्र अनुबंध, संयुक्त अभ्यास, और नौसैनिक सहयोग को तेज़ी से आगे बढ़ाया गया। साथ ही, वे इरान के साथ ‘समान द्विपक्षीय’ कूटनीति को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि दोनों मुख्य शक्ति—अमेरिका और पर्शियन - के बीच फँसने से बचा जा सके।
आर्थिक प्रतिबंध और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
26 जून को अमेरिकी ट्रेजरी ने हांगकांग, सैन्य‑किफ़ायती कंपनियों, यूएई और तुर्की में 22 कंपनियों पर नए प्रतिबंध लगाए। उनका आरोप था कि ये संस्थाएँ ईरान के ‘क़ुद्स फोर्स’ को तेल निर्यात में मदद कर रही थीं। तुर्की ने इस कदम को ‘क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा’ कहा, क्योंकि तुर्की के 534 किमी लंबी सीमा के साथ ईरान में क़ुर्द उत्तेजना के फैलने की संभावनाएँ मौजूद हैं।
इन आर्थिक दबावों के बीच, GCC ने ‘गुल्फ रेलवे प्रोजेक्ट’ जैसे बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाओं के लिए वैकल्पिक वित्तीय स्रोतों की तलाश शुरू की। इससे क्षेत्रीय व्यापार के लिए नई कनेक्टिविटी संभावनाएँ पैदा हो रही हैं, पर साथ ही देरी‑और‑अनिश्चितता भी बढ़ रही है।

भविष्य की संभावनाएँ और निष्कर्ष
ऑक्टober 3 2025 को हमास ने इज़राइल के साथ एक ‘शर्तीय शांति’ समझौता किया, जिसमें ट्रम्प के ग़ाज़ा शांति‑योजना के कुछ बिंदुओं पर चर्चा जारी रहने का इशारा किया गया। इससे पता चलता है कि संघर्ष की सच्ची शांति अभी दूर है।
खाड़ी देशों के लिए सबसे बड़ा सवाल यह रहेगा कि वे अपने ‘अमेरिकी सुरक्षा छत्र’ को कैसे पुनः परिभाषित करेंगे, जबकि ईरान के साथ ‘संभव मित्रता’ की राह खोज रहे हैं। ‘बिबी इफेक्ट’—नेत्यानुग्रह में बेंजामिन नेतन्याहू (इज़राइल के प्रधान मंत्री) का प्रभाव—ने पहले अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने में मदद की, पर अब वह क्षेत्रीय अस्थिरता को नया मोड़ दे रहा है।
- 13 जून‑24 जून 2025: अमेरिकी‑ईरानी सक्रिय संघर्ष की अवधि
- 21 जून: नटांज़‑इस्फ़ाहान‑फ़र्डोव पर अमेरिकी बंकर‑बस्टर बमबारी
- 23 जून: अल‑उदीद एयर बेस पर ईरानी मिसाइल हमला
- GCC देशों ने सुरक्षा साझेदारियों को पाकिस्तान, तुर्की, इजिप्ट की ओर मोड़ा
- 26 जून: अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों ने 22 कंपनियों को लक्षित किया
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
यह संघर्ष क़तर की सुरक्षा को कैसे प्रभावित करता है?
अल‑उदीद एयर बेस पर ईरानी मिसाइल हमले ने क़तर को सीधे निशाना बनाया, जिससे उसके राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने अमेरिकी रक्षा संधि पर पुनः विचार किया। अब क़तर पड़ी क्षणिक अराजकता को देखते हुए देखा है कि वह अपने सैन्य बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने और अन्य गठबंधनों, जैसे तुर्की और पुर्तगाल, के साथ नई रक्षा समझौतों की खोज में है।
संयुक्त राज्य ने इरान पर प्रतिबंध क्यों लगाए?
संयुक्त राज्य ने कहा कि हांगकांग, यूएई और तुर्की की 22 कंपनियों द्वारा इरान के क़ुद्स फोर्स को तैलीय आय में मदद करना, यूएस‑ईरान प्रतिबंध नीति का उल्लंघन है। इस कदम का उद्देश्य ईरान की आर्थिक शक्ति को कम करना और उसकी परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ने से रोकना था, जबकि सूक्ष्म‑सैन्य प्रतिबंध लेकर अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों को चेतावनी दी गई।
GCC देशों ने कौन‑से वैकल्पिक रक्षा साझेदारों को चुना?
सऊदी, यूएई, क़तर ने क्रमशः पाकिस्तान के साथ सैन्य प्रशिक्षण, तुर्की के साथ नौसैनिक अभ्यास, और इजिप्ट के साथ थ्रस्टेड एंटी‑एयर सिस्टम अधिग्रहण को तेज़ किया। ये गठबंधन अमेरिकी‑मुख्य रक्षा समीकरण से हटकर क्षेत्रीय सुरक्षा को विविधित करने की दिशा में कदम हैं।
भविष्य में इस संघर्ष का संभावित विस्तार क्या हो सकता है?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ईरान का परमाणु कार्यक्रम पुनः गति पकड़े, तो खाड़ी देशों की सुरक्षा रणनीति अधिक जटिल हो सकती है। साथ ही, इज़राइल‑ईरान के बीच अनुच्छेदित चरम सीमा, और तुर्की‑इराक‑सीरिया के मौजूदा असंतोष को देखते हुए, एक व्यापक क्षेत्रीय सैन्य उलझन की संभावना बनी रहती है।
Ajeet Kaur Chadha
ओह भाई, ट्रम्प फिर से मध्य‑पूर्व में हाई‑ड्रामा शुरू कर दिया, बिलकुल वही पुराना सस्पेंस फ़िल्म जैसा।
हम सबको अब बस popcorn लेके इंतजार करना पड़ेगा कि अगली बड़ी बमबारी कब होगी।