मणिपुर में हिंसा: मणिपुरी मेइती कार्यकर्ताओं द्वारा सरकार को 24 घंटे का अल्टीमेटम
मणिपुर में हिंसा और मेइती समुदाय की मांगे
मणिपुर, जो एक सुंदर और अपरिवर्तनीय संस्कृति वाला राज्य है, इन दिनों शांतिपूर्ण जनजीवन से दूर संघर्ष में उलझा हुआ है। राज्य में मेइती समुदाय के नागरिक समाज समूहों ने सरकार के सामने एक कड़ा अल्टीमेटम जारी किया है, जिसकी मंज़ूरी में वे राज्य में शांतिपूर्ण समाधान की उम्मीद कर रहे हैं। शहर में दो समुदायों के बीच खींचतान और संघर्ष की स्थिति वर्तमान में तनावपूर्ण हो गई है, जिसके लिए सरकार की नीतियों को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है।
मुख्यमंत्री के निवास पर हमला
शनिवार की शाम को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के निवास पर एक भीड़ घुसने की कोशिश कर रही थी। इस घटना ने प्रशासन को पाँच जिलों में कर्फ्यू लगाने और सात जिलों में इंटरनेट सेवाएँ बंद करने के लिए मजबूर कर दिया। स्थिति इतनी खराब थी कि सुरक्षा बलों को आखिरकार आंसू गैस का उपयोग करना पड़ा। यह घटना शहर की वर्तमान तनावपूर्ण स्थिति को दर्शाती है, जहाँ अनुशासन और व्यवस्था को बरकरार रखना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
मिलिटेंट्स के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की मांग
कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटेग्रिटी (कोकोमी) ने सशस्त्र उग्रवादी समूहों के खिलाफ मजबूती से कार्रवाई की मांग की है। कोकोमी के प्रवक्ता, खुराइज़म अथोबा ने ताकीद किया है कि 24 घंटे के अंदर कार्रवाई न होने पर आम जनता में बेहद गुस्सा फूट सकता है। उनकी माँग में विशेष रूप से सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA) को खत्म करने की बात शामिल है, जिसे जनाधार और विश्वसनीयता की कमी के रूप में देखा जा रहा है।
मणिपुर में जनकल्याण की दृष्टि
मणिपुर में हालात बिगड़ने का कारण छह लापता व्यक्तियों के शवों की खोज है, जिसमें एक बच्चा और दो महिलाएं शामिल हैं। ये लोग सोमवार से लापता थे, जब कुष्टि के दौरान दस सशस्त्र कुकी पुरुष मारे गए थे। इस घटना ने सरकार पर कार्रवाई के लिए दबाव बढ़ा दिया है।
इन हिंसक घटनाओं के बीच शनिवार को प्रदर्शनकारियों ने तीन राज्य मंत्रियों के आवासों पर हमला किया। इनमें मुख्यमंत्री के साले और बीजेपी विधायक आरके इमो सिंह का भी निवास शामिल था। इसने राज्य में अराजकता की स्थिति पैदा कर दी है, जहाँ सरकारी पक्ष की कई कमियाँ उभरकर सामने आईं।
समाज का सामाजिक ढांचा और संघर्ष
मणिपुर में मेइती समुदाय और कुकी जनजातियों के बीच संघर्ष काफी जटिल है। मेइतियों की इच्छा अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत आने की है, जबकि कुछ जनजातियाँ मणिपुर में एक अलग प्रशासन की सीमांकन की माँग कर रही हैं। इन दोनों समुदायों के बीच संघर्ष का इतिहास है, जहाँ भाषाई, सांस्कृतिक और मोहिनी मुद्दों ने आग में घी का काम किया है।
कई लोग इस स्थिति को प्रशासन की विफलता के रूप में देखते हैं, जिनके पास सही योजना और प्रभावी कार्य निष्पादन का अभाव है। इस संपूर्ण समस्या को हल करना कोई आसान कार्य नहीं है, लेकिन इसके लिए व्यावसायिक इच्छा और साहसिक कदम की जरूरत है।
मीडिया, इंटरनेट और आंतरिक संचार
इंटरनेट सेवाओं के बंद होने के पीछे मुख्य कारण अफवाहों और गलतफहमियों का फैलाव रोकना है। विशेषकर झूठी जानकारी के आधार पर हिंसक घटनाएं बढ़ सकती हैं। हालांकि, इसने राज्य के लोगों के बीच निराशा और गुस्सा पैदा किया है, जो संवाद की आवश्यकता को और बढ़ा देता है।
राज्य प्रशासन, विशेषकर मुख्य सचिव विनीत जोशी, इस चुनौती के समाधान के प्रयास में लगे हैं। लेकिन उनको जन-विश्वास बनाए रखने के लिए सूचनाओं की पारदर्शिता और सही कदम उठाने की महत्वता को समझना होगा।
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