त्रिपुरा में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का रजत जयंती उत्सव, मंत्री ने अंग्रेजी निर्भरता पर सवाल उठाए

त्रिपुरा में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का रजत जयंती उत्सव, मंत्री ने अंग्रेजी निर्भरता पर सवाल उठाए

त्रिपुरा में 21 फरवरी 2025 को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रजत जयंती समारोह का आयोजन किया गया, जिसने भाषाई विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को उजागर किया। इस अवसर पर, संसदीय मामलों के मंत्री आर एल नाथ ने शिक्षा और शासन में अंग्रेजी पर अत्यधिक निर्भरता की आलोचना की और क्षेत्रीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भाषाओं की विविधता को संजोकर ही हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को बचा सकते हैं।

बांग्लादेश के सहायक हाई कमीशन ने भी अगरतला में इस दिवस का आयोजन किया, जिससे बंगाली भाषी क्षेत्रों के साथ साझा सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित किया गया। 1999 में यूनेस्को द्वारा शुरू किया गया यह उत्सव 1952 के बंगाली भाषा आंदोलन को स्मरण करता है, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान में उर्दू की थोपने के विरोध में चार छात्रों ने अपनी जान गंवा दी थी।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनके सरकार द्वारा बंगाली के अलावा कुरमाली, राजबंशी और कामतापुरी जैसी विभिन्न भाषाओं के मान्यता देने का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार स्थानीय भाषाओं को भी पारंपरिक भाषा के रूप में स्वीकार करती है, ताकि उनकी सांस्कृतिक पहचान बची रहे।

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस वर्तमान वैश्विक दृष्टिकोण के बीच भाषाई विविधता की सुरक्षा की ओर ध्यान आकर्षित करता है। यह हमें याद दिलाता है कि यदि हमने अपनी मातृभाषाओं को नहीं बचाया, तो हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों को भी खो सकते हैं। यह दिवस हमेशा से यह भावना जगाता है कि हमें बहुभाषिकता को शिक्षा और सांस्कृतिक पहचान के विकास में एकजुटता के साधन के रूप में देखना चाहिए।

द्वारा लिखित Pari sebt

मैं एक समाचार विशेषज्ञ हूँ और मुझे भारत में दैनिक समाचार संबंधित विषयों पर लिखना पसंद है।

Sree A

अंग्रेजी की जगह स्थानीय भाषाओं को शिक्षा में शामिल करना बिल्कुल सही है। लेकिन ये सब नीतियाँ तब तक काम नहीं करेंगी जब तक टीचर्स को उन भाषाओं में ट्रेनिंग नहीं मिलेगी। बस घोषणा करने से कुछ नहीं होगा।

Swati Puri

मैंने अपने बच्चे को कामतापुरी में बेसिक रीडिंग सिखाई, और उसकी कॉन्फिडेंस लेवल में जबरदस्त फर्क आया। जब बच्चे अपनी मातृभाषा में सोचते हैं, तो उनकी क्रिटिकल थिंकिंग भी डेवलप होती है। ये सिर्फ भाषा नहीं, ये आईडेंटिटी है।

Avdhoot Penkar

अरे भाई, अंग्रेजी छोड़ोगे तो नौकरी कैसे मिलेगी? 😅 ये सब लोग घर बैठे बातें कर रहे हैं। जब तक बैंक और कोर्ट में हिंदी नहीं चलेगी, तब तक ये सब नाटक है।

SUNIL PATEL

ये सब नाटक है। राजबंशी और कुरमाली को भाषा कहना गलत है। ये बोलियाँ हैं। यूनेस्को को भी गलत जानकारी दे रहे हो। भाषा की परिभाषा क्या है, समझो पहले।

megha u

अंग्रेजी निर्भरता सिर्फ सरकार की गलती नहीं... ये एक गहरा कॉलोनियल कॉम्प्लेक्स है 😶 हमने अपनी भाषाओं को बर्बर समझना शुरू कर दिया... अब ये बच्चे अंग्रेजी में सपने देखते हैं।

pranya arora

हम भाषा को बचाने की बात कर रहे हैं, लेकिन क्या हम अपने घरों में उसे जी रहे हैं? मेरी दादी बंगाली में कविताएँ कहती थीं, मैं उन्हें भूल गया। हम खुद अपनी विरासत को नजरअंदाज कर रहे हैं। जब तक हम इसे अपनी दिनचर्या में शामिल नहीं करेंगे, तब तक कोई पॉलिसी फायदा नहीं करेगी।

Arya k rajan

मैंने अपने गाँव में बच्चों के लिए राजबंशी में गाने सिखाए। उनकी आँखों में चमक आ गई। ये बस शिक्षा नहीं, ये एक जुड़ाव है। अंग्रेजी जरूरी है, लेकिन वो अंतिम नहीं। अपनी भाषा से शुरुआत करो, फिर दुनिया के साथ जुड़ो।

DEVANSH PRATAP SINGH

मंत्री जी का जो बोला उसका समर्थन करता हूँ। लेकिन अब ये सब लोग बस बातें कर रहे हैं। जब तक हम इसे स्कूलों में पाठ्यक्रम में डालने का कदम नहीं उठाएंगे, तब तक ये सब जल्दी ही भूल जाएगा। बस एक दिन का उत्सव नहीं, एक नीति चाहिए।