राजा महेन्द्र प्रताप सिंह: अलिगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के लिए ज़मीन दान करने वाले हिन्दू सुधारक
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत से ऐसी शख्सियतें हैं, जिनके योगदान को हमने समय-समय पर भुला दिया है। इन्हीं गुमनाम योद्धाओं में राजाओं की ऐसी सूची में एक नाम आता है - राजा महेन्द्र प्रताप सिंह का। वे केवल एक राजा ही नहीं थे, बल्कि एक सामाजिक सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, और राजनीतिज्ञ के रूप में विख्यात थे। उन्हें अलिगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के विकास के लिए अपने बड़े योगदान के लिए भी जाना जाता है।
राजा महेन्द्र प्रताप सिंह का जन्म 1886 में उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता, राजा घनश्याम सिंह, पहले ही समाज सुधार के कार्यों में सक्रिय थे और उन्होंने सर सैय्यद अहमद खान की मदद की थी। महेन्द्र प्रताप सिंह की शिक्षा अलिगढ़ में हुई और उन्होंने मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेजन स्कूल, जो बाद में एएमयू के नाम से जाना गया, में पढ़ाई की।
महेन्द्र प्रताप सिंह ने देश की स्वतंत्रता के लिए जी-जान लगाई। उन्होंने 1915 में काबुल से प्रथम विश्व युद्ध के समय निर्वासित 'प्रोविजनल गवर्नमेंट ऑफ इंडिया' की अध्यक्षता की। ब्रिटिश सरकार उनके क्रांतिकारी कार्यों के कारण उन्हें देशद्रोही मानती थी और यही वजह है कि उन्हें 1932 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया गया।
स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए उनकी सराहना की जाती है, हालांकि यह उनकी राजनैतिक जीतों का हिस्सा भी थे। 1957 के लोकसभा चुनाव में, उन्होंने स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में मथुरा सीट जीती और जाने-माने जन संघ नेता अटल बिहारी वाजपई को शिकस्त दी। वाजपई इस चुनाव में चौथे स्थान पर रहे और बाद में उ. प्रदेश से बलरामपुर सीट जीती।
एएमयू के साथ सिंह का जुड़ाव केवल ज़मीन दान तक ही सीमित नहीं था। उनका परिवार पहले से ही सर सैय्यद के साथ महत्वपूर्ण सहयोग में था, जिसकी बुनियाद पहले से ही उनके परिवार ने न सिर्फ एएमयू की स्थापना में दी बल्कि उनके पिता ने भी सर सैय्यद की मदद की थी।
हाल के समय में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2019 के विधानसभा चुनावों के दौरान सिंह के योगदान को स्मरण करते हुए उनके नाम पर एक विश्वविद्यालय की घोषणा की। यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भी मान्य किया गया था। राजा महेन्द्र प्रताप सिंह का नाम भारतीय इतिहास के उन महान असंख्य नायकों में शामिल है जो अपने योगदान के बावजूद इतिहास के पन्नों में कहीं खो गये हैं।
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