दुनिया की पहली अकारण खिलाड़ी शीतल देवी ने पार की विश्व रिकॉर्ड, पेरिस पैरालिंपिक्स में रैंकिंग राउंड में दूसरा स्थान
शीतल देवी का अद्वितीय प्रदर्शन
भारतीय पैराअथलीट शीतल देवी ने पेरिस पैरालिंपिक्स में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है। शीतल केवल 17 वर्ष की हैं और जन्मजात विकृति फोकोमेलिया सिंड्रोम के कारण उनके दोनों बाजू नहीं हैं। इसके बावजूद उन्होंने महिला इंडिविजुअल कंपाउंड ओपन रैंकिंग राउंड में 703 अंक हासिल किए, जो पहले के विश्व रिकॉर्ड से पांच अंक अधिक है।
ग्रेट ब्रिटेन की फोएबी पाइन पैटरसन ने इसी महीने पहले 698 अंकों का विश्व रिकॉर्ड बनाया था, जिसे शीतल ने पछाड़ दिया। हालांकि, तुर्की की ओजनूर गिरदी क्यूर ने 704 अंक हासिल किए और नया विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया, जिससे शीतल को दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। शीतल का यह स्कोर उन्हें राउंड ऑफ 32 से बाई दिलाकर सीधे राउंड ऑफ 16 में ले गया है।
प्रतिद्वंद्वियों का सामना
राउंड ऑफ 16 में शीतल का मुकाबला चिली की म्यारियाना ज़ूनीगा और कोरिया की चोई ना मी के बीच के विजेता से होगा। म्यारियाना ज़ूनीगा टोक्यो पैरालिंपिक्स में सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं और यह मुकाबला निश्चित रूप से दिलचस्प होगा।
शीतल की कहानी वास्तव में प्रेरणादायक है। उन्हें जम्मू और कश्मीर के किश्तवार में एक सैन्य शिविर में खोजा गया था और भारतीय सेना द्वारा गोद लिया गया। शीतल ने 2022 के एशियन पैरा गेम्स में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीते थे जो कि चीन के हांगझो में आयोजित हुए थे। इससे पहले, उन्होंने पिछले वर्ष पारा वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप में भी पदक जीता। शीतल खड़ी होकर प्रतिस्पर्धा करती हैं, जबकि उनकी तुर्की की प्रतिद्वंदी डब्ल्यू2 श्रेणी में हैं।
रैंकिंग राउंड का विवरण
रैंकिंग राउंड में प्रत्येक तीरंदाज को 50 मीटर या 70 मीटर की दूरी से कुल 72 तीर मारने होते हैं। प्रत्येक चार मिनट में उन्हें छह तीर छोड़ने का समय दिया जाता है। इस राउंड के शीर्ष चार खिलाड़ियों को राउंड ऑफ 32 से बाई मिलती है और ये सीधे राउंड ऑफ 16 में प्रवेश करते हैं।
शीतल देवी के इस प्रदर्शन ने उन्हें एक नई ऊंचाई दी है और उनकी यह यात्रा न केवल भारतीय खिलाड़ियों के लिए बल्कि सभी के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। शीतल की कहानी इस बात का सबूत है कि आत्मविश्वास और मेहनत के साथ किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है।
भविष्य की दिशा
शीतल देवी ने जो उपलधि हासिल की है, वह वाकई काबिले तारीफ है और उम्मीद है कि वह आने वाले मुकाबलों में भी इसी तरह बेहतर प्रदर्शन करेंगी। उनके कोच और सपोर्ट स्टाफ ने जो मेहनत की है, वह भी इस सफलता के लिए सराहनीय है। हमें यकीन है कि शीतल का यह सफर यहीं नहीं रुकेगा और वह आने वाले समय में और भी कई उपलब्धियां हासिल करेंगी।
शीतल की कहानी एक अद्वितीय मिसाल है, कि किस तरह विपरीत परिस्थितियों में भी दृढ़संकल्प और मेहनत से सफलता प्राप्त की जा सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष और सहयोग
पेरिस पैरालिंपिक्स में शीतल के प्रदर्शन ने न केवल भारत का मान बढ़ाया है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय तीरंदाजी में भी एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इस बीच तुर्की की ओजनूर गिरदी क्यूर और अन्य प्रतिस्पर्धियों के बीच भी एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा देखने को मिली है, जो खेल भावना को और भी अधिक प्रबल बनाती है।
भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि शीतल देवी के नाम से एक नया अध्याय अंतर्राष्ट्रीय पैरालिंपिक इतिहास में जुड़ चुका है और पेरिस पैरालिंपिक्स इसका एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
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