बॉलीवुड और साउथ सिनेमा में हथियारों का बदलता ट्रेंड: कुल्हाड़ी और हैमर की बढ़ती लोकप्रियता

बॉलीवुड और साउथ सिनेमा में हथियारों का बदलता ट्रेंड: कुल्हाड़ी और हैमर की बढ़ती लोकप्रियता

फिल्मों में बंदूकों की छुट्टी, कुल्हाड़ी-हैमर का बोलबाला

क्या आपने हाल की हिंदी या दक्षिण भारतीय कोई ऐक्शन फिल्म देखी है? ज़रा गौर कीजिए, अब लीड हीरो या विलेन के हाथ में बंदूक या तलवार कम, कुल्हाड़ी और हैमर जैसी भारी-भरकम चीजें ज़्यादा दिखती हैं। ये नया ट्रेंड अचानक नहीं आया—'बाहुबली' के मशहूर महिष्मती हैमर से लेकर 'केजीएफ 2' में रॉकी भाई की कुल्हाड़ी तक, हर बड़ी ऐक्शन फिल्म में इन हथियारों का जलवा है। सिंपल बंदूकों के मुकाबले, इन हथियारों का जो ऐतिहासिक वजन और क्राफ्ट दिखता है, वह स्क्रीन पर बिल्कुल अलग असर छोड़ता है। यही वजह है कि बड़े डायरेक्टर्स अब इन्हें चुन रहे हैं।

ऐक्शन कोरियोग्राफर श्याम कौशल का कहना है, “हथियार सिर्फ मारने-पीटने के लिए नहीं, इनकी कहानी भी है। कुल्हाड़ी हों या वॉर हैमर—ये कभी काम का औजार थे, जिन्हें बहादुरी का प्रतीक बना दिया गया।” 'आरआरआर' और 'जवान' जैसी फिल्मों में उनका यही योगदान है कि फाइट सीन असली लगें, लेकिन दर्शक प्राचीन भारतीय संस्कृतिक संवाद भी पहचाने।

असली जैसे हथियार, असली तकनीक

असली जैसे हथियार, असली तकनीक

फिल्ममेकर्स अब सिर्फ दिखावे की चीजें नहीं, असली टेक्निक भी ला रहे हैं। मुंबई के मार्शल आर्ट एक्सपर्ट अर्जुन मल्होत्रा ने कई ऐक्टर को हैमर और कुल्हाड़ी के साथ ट्रेनिंग दी है। वे बताते हैं, “Lucerne हैमर से लेकर राजपूताना कुल्हाड़ी तक—weapons के हर हिस्से का इस्तेमाल अलग होता है। हैमर का आगे की नोक thrust के लिए, हैड crushing के लिए और पीछे की beak पकड़ने के लिए—ये सब सिखाना पड़ता है।” इस तरह की रिहर्सल से लड़ाई के सीन ज़्यादा रियल लगते हैं।

कास्ट्यूम डिज़ाइनर अनु पार्थसारथी ने तो अपने फिल्मी हथियारों को पुरानी राजपूताना पांडुलिपियों से मिलाकर बनाया है: “हम 2-3 किलो का स्टील-रीइन्फोर्स्ड लकड़ी का हैमर बनाते हैं—बिल्कुल पुराने जंग के हथियार जैसे, लेकिन सिक्योरिटी के साथ।” अब कलाकार खुद वज़नदार हथियार उठाकर तैयार करते हैं, जिससे उनकी बॉडी लैंग्वेज और एफेक्ट में बदलाव भी दिखता है।

इतना ही नहीं, 2025 में भारतीय डिफेंस ऑपरेशन सिंदूर में स्वदेशी HAMMER मिसाइलों के इस्तेमाल से आम लोगों में भी हैमर जैसे नामों और रूपों को लेकर दिलचस्पी बढ़ी है। फिल्म 'विजयंता' के निर्देशक आदित्य चोपड़ा ने तो ऐलान कर दिया कि उनके क्लाइमैक्स में एक भयंकर फाइट के दौरान हैमर मिसाइल लॉन्चर के साथ-साथ पारंपरिक वॉर हैमर भी दिखेंगे!

दक्षिण भारतीय सिनेमा लगातार अपने ऐतिहासिक युद्ध दृश्यों, जैसे कि 'पोन्नियिन सेलवन' की चोल वंश की कुल्हाड़ियां, के जरिए इस ट्रेंड को आगे बढ़ा रहा है। वहीं, अब बॉलीवुड भी पीछे नहीं—ऋतिक रोशन की 'वॉर 2' जैसी फिल्मों में अब ये ट्रेडिशनल हथियार आम हो चुके हैं। FICCI (फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री) की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि 2024-25 में प्रॉप हैमर और कुल्हाड़ी की मांग फिल्म स्टूडियोज में 40% बढ़ चुकी है।

अब जब हर दूसरी फिल्म में हथियारों की ये नई भाषा दर्शकों को लुभा रही है, तो लगता है कि कुल्हाड़ी और हैमर का तगड़ा चलन आने वाले सालों तक कायम रहने वाला है।

द्वारा लिखित Pari sebt

मैं एक समाचार विशेषज्ञ हूँ और मुझे भारत में दैनिक समाचार संबंधित विषयों पर लिखना पसंद है।

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Atanu Pan

असली में ये ट्रेंड बहुत अच्छा है। बंदूकें तो हर जगह दिखती हैं, लेकिन कुल्हाड़ी या हैमर से लड़ाई देखकर लगता है जैसे भारत की जड़ें फिर से जाग रही हैं।

Pankaj Sarin

बस बंदूक नहीं दिखे तो लगता है फिल्म बन गई अब तो हर फिल्म में हैमर और कुल्हाड़ी लेकर आ रहे हैं जैसे कोई लकड़ी का टुकड़ा लेकर नाटक कर रहा हो

Mahesh Chavda

ये सब बस एक ट्रेंड है जिसे बड़े डायरेक्टर बना रहे हैं ताकि दर्शक उनकी फिल्मों को देखें और फिर वो खुद उसी ट्रेंड को दोहराएं बिना किसी गहराई के

Sakshi Mishra

क्या हम वाकई इन हथियारों को अपनी संस्कृति का प्रतीक मान रहे हैं... या बस एक नए तरीके से अपनी हिंसा को सुंदर बना रहे हैं? जब एक हथियार की कहानी बन जाती है, तो क्या उसके पीछे की रक्तक्षति की कहानी भी सुनी जाती है?

Radhakrishna Buddha

अरे भाई ये हैमर और कुल्हाड़ी वाला ट्रेंड तो बहुत बढ़िया है! जब रॉकी भाई कुल्हाड़ी घुमाता है तो मेरा दिल धड़कता है जैसे मैं खुद उस जंगल में हूँ!

Govind Ghilothia

यह एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। भारतीय सिनेमा अपने शास्त्रीय युद्ध परंपराओं को फिर से जीवित कर रहा है, जो आधुनिक तकनीकी उपकरणों की तुलना में अधिक गहराई और आत्मा लाता है।

Sukanta Baidya

हैमर और कुल्हाड़ी? ये तो बस बजट कम होने पर बंदूक नहीं खरीद पाने का बहाना है। बॉलीवुड तो हमेशा से ऐसा ही करता रहा है-पुराना बाहर फेंक, नया बाहर लाओ

Adrija Mohakul

मैंने एक दिन एक फिल्म सेट पर देखा था कि एक एक्टर ने कुल्हाड़ी उठाकर बिना ट्रेनिंग के घुमाया और उसका हाथ चोट लग गया। फिल्म बनाने के लिए असली टेक्निक ज़रूरी है, न कि सिर्फ दिखावा।

Dhananjay Khodankar

इस ट्रेंड के पीछे कुछ असली बातें हैं। जब एक हथियार के इतिहास को फिल्म में समझाया जाता है, तो वो बस एक शो नहीं, बल्कि एक सीख बन जाता है। मुझे लगता है ये बहुत अच्छा है।

shyam majji

कुल्हाड़ी और हैमर तो हर फिल्म में आ गए अब अगली फिल्म में लोहे का बर्तन भी लेकर आएंगे

shruti raj

ये सब बस एक गुप्त योजना है! जब लोग हैमर और कुल्हाड़ी के बारे में बात करने लगेंगे तो वो भूल जाएंगे कि देश में बेरोजगारी बढ़ रही है... और फिल्में तो बस एक धोखा हैं 😔💣

Khagesh Kumar

ये ट्रेंड अच्छा है क्योंकि ये असली इतिहास से जुड़ा है। बंदूक तो हर देश में है, लेकिन हमारे हथियारों की कहानी हमारी है।

Ritu Patel

अगर ये ट्रेंड इतना बड़ा है तो फिर बॉलीवुड क्यों नहीं अपनी असली लड़ाई के तरीके दिखाता? जैसे बाजार में लड़ने का तरीका या बुराई के खिलाफ आवाज उठाना? नहीं, बस हैमर और कुल्हाड़ी लेकर नाचना है

Deepak Singh

क्या आपने देखा कि 'केजीएफ 2' में हैमर की नोक का डिज़ाइन वास्तविक राजपूताना हथियारों से मेल खाता है? यह बहुत विस्तार से रिसर्च किया गया है-और फिर भी लोग इसे सिर्फ एक ट्रेंड कहते हैं?

Rajesh Sahu

हमारे देश के हथियारों को दुनिया भर में देखा जा रहा है और अभी तक किसी ने ये नहीं कहा कि ये भारतीय शक्ति का प्रतीक हैं! बाहुबली ने दुनिया को दिखा दिया कि हमारे युद्ध कला कितनी शक्तिशाली हैं!

Chandu p

मैंने अपने गाँव में एक बूढ़े आदमी को कुल्हाड़ी से लकड़ी काटते देखा था-वो उसे इतनी आसानी से घुमाता था जैसे ये उसका हाथ हो। फिल्मों में भी ऐसा ही लगना चाहिए।

Gopal Mishra

यह ट्रेंड सिर्फ फिल्मों के लिए नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक अहंकार के पुनर्जागरण का भी प्रतीक है। जब एक फिल्म अपने ऐतिहासिक हथियारों के निर्माण तकनीक, उपयोग के तरीके और सांस्कृतिक संदर्भ को विस्तार से दिखाती है, तो यह दर्शकों के लिए एक शिक्षाप्रद अनुभव बन जाती है। यह ट्रेंड न केवल व्यावसायिक रूप से सफल है, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिशा में आगे बढ़ना हमारी जिम्मेदारी है।