मानसिक स्वास्थ्य कैसे बनाए रखें: आसान टिप्स और रोज़मर्रा की आदतें
आपको लगता है कि दिमाग थक गया है, लेकिन समाधान जटिल नहीं होना चाहिए। बस कुछ छोटे‑छोटे बदलाव अपनाएँ, फिर देखेंगे मन में नई ताज़गी आएगी। नीचे ऐसे ही टिप्स दिए हैं जो तुरंत असर दिखाते हैं।
तनाव को पहचानना और कम करना
पहला कदम है यह समझना कि तनाव कब शुरू होता है। अगर आप काम या रिश्ते की वजह से घबराहट महसूस कर रहे हों, तो एक नोटबुक में भाव लिखिए। लिखते‑लिखते अक्सर हल्का महसूस होते हैं क्योंकि दिमाग को बोझ कम हो जाता है।
दूसरा आसान उपाय – गहरी सांस लेना। पाँच सेकंड तक नाक से साँस अंदर ले‑ और फिर चार सेकंड तक धीरे‑धीरे बाहर छोड़ें। इसे दो‑तीन मिनट रोज़ करें, तनाव के स्तर में काफी गिरावट आएगी।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी सीमित रखें। एक दिन में 30 मिनट से ज्यादा स्क्रॉलिंग न करने की कोशिश करें; इससे मन शांति पाता है और अनावश्यक तुलना कम होती है।
मन को ताज़ा रखने के छोटे‑छोटे उपाय
शारीरिक activity सीधे मानसिक स्वास्थ्य में मदद करती है। रोज़ 15 मिनट तेज चलना, साइकिलिंग या घर पर स्ट्रेचिंग से एंडॉर्फिन रिलीज होते हैं, जो खुशी का कारण बनते हैं। अगर समय नहीं है तो लिफ्ट की बजाय सीढ़ियाँ चुनें; छोटा बदलाव बड़ा फर्क देता है।
भोजन भी दिमाग को असर करता है। फलों और सब्जियों में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट तनाव कम करते हैं। एक प्लेट में हरी पत्तेदार साग, टमाटर या ब्लूबेरी जोड़ें; इससे स्मृति बेहतर होती है और मूड स्थिर रहता है।
नींद को नजरअंदाज न करें। रोज़ 7‑8 घंटे की नींद दिमाग को रीसेट करती है। सोने से पहले फोन बंद कर दें, हल्की किताब पढ़ें या शांत संगीत सुनें – यह जल्दी नींद लाने में मदद करता है।
आखिर में, खुद के लिए समय निकालना जरूरी है। चाहे वह 10 मिनट का ध्यान (मेडिटेशन) हो, या कोई हॉबी जैसे पेंटिंग, बागवानी, संगीत सुनना – ये सब दिमाग को रीफ़्रेश करते हैं और सकारात्मक ऊर्जा लाते हैं।
इन सरल आदतों को अपनी रोज़मर्रा की routine में शामिल करें। आपको तुरंत बड़ी बदलाव नहीं दिखेगा, लेकिन कुछ हफ्तों बाद आप देखेंगे कि तनाव कम हुआ है, नींद बेहतर हुई है और सोचने‑समझने की शक्ति बढ़ी है। याद रखें, मानसिक स्वास्थ्य एक यात्रा है, लक्ष्य नहीं। छोटे कदम लगातार चलते रहें, खुश रहने का रास्ता वही बनता है।
रीवा में एक युवक के पेट से 5 किलो सिक्के, कील, ब्लेड आदि निकाले गए। डॉक्टर मानते हैं कि यह पिका या डिमेंशिया जैसी मानसिक स्थिति का नतीजा हो सकता है। ऐसे मामलों में समय रहते मनोचिकित्सा और देखरेख बेहद ज़रूरी है।