रीवा में युवक के पेट से निकले सिक्के, ब्लेड और कील: मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े गंभीर संकेत

रीवा में युवक के पेट से निकले सिक्के, ब्लेड और कील: मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े गंभीर संकेत

रीवा में चौंकाने वाला मेडिकल केस: युवक के पेट में 5 किलो मेटल

रीवा के संजय गांधी मेडिकल कॉलेज में हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने डॉक्टरों से लेकर आम लोगों तक को हैरान कर दिया। 32 साल के एक युवक को तेज पेट दर्द की शिकायत के बाद अस्पताल लाया गया। एक्स-रे और जांच में पेट में अजीबोगरीब चीज़ें नज़र आईं—सिक्के, कील, ब्लेड, चैन और न जाने क्या-क्या। आखिरकार डॉक्टरों ने उसकी आपातकालीन सर्जरी की और करीब 5 किलो धातु के इन सामानों को निकालने में कामयाब रहे।

ऐसे मामलों के बारे में आमतौर पर हम सिर्फ विदेशों की अजीबो-गरीब खबरों में सुनते थे, लेकिन यह घटना हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बनी चुप्पी पर सवाल उठा रही है। मेडिकल टीम भी हैरान थी कि किसी की पाचन तंत्र इतनी देर कैसे यह सब झेल गया।

क्या है 'पिका' और कब बढ़ता है खतरा?

क्या है 'पिका' और कब बढ़ता है खतरा?

डॉक्टरों के मुताबिक, ऐसा व्यवहार अक्सर पिका जैसी मानसिक स्थिति के कारण हो सकता है। पिका एक मनोवैज्ञानिक विकार है, जिसमें व्यक्ति मिट्टी, कंकर, कागज या धातु जैसी खाने में न आने वाली चीज़ें निगलने लगता है। यह समस्या बच्चों में ज्यादा दिखती है, लेकिन बड़े भी इससे प्रभावित हो सकते हैं– खासकर मानसिक विकास में रुकावट या दूसरी दिमागी बीमारियों वाले लोग। विशेषज्ञ मानते हैं कि खुद को या अपने शरीर को नुकसान पहुंचाने का यह तरीका कई बार आत्मघाती प्रवृत्तियों का इशारा भी देता है।

हालांकि, कुछ मामलों में डिमेंशिया या अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से पीड़ित मरीजों में भी असामान्य व्यवहार दिख सकता है जैसे असंगत बातचीत या सामाजिक व्यवहार में समस्या। लेकिन तेजधार वाली चीज़ें खाना, बार-बार इस तरह चीज़ें निगलना, आमतौर पर पिका विकार से ही जुड़ा माना जाता है।

मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर मानते हैं कि इस तरह के मामलों में न सिर्फ मेडिकल इमरजेंसी बल्कि मानसिक स्वास्थ्य जांच भी जरूरी कदम है। सही वक्त पर पहचान और इलाज न मिलने से मरीज की जान भी जा सकती है।

  • ऐसे मरीज को तुरंत मनोचिकित्सक की देखरेख में रखा जाता है।
  • परिवार या देखभाल करने वालों को भी यहां बड़ी भूमिका निभानी होती है।
  • मरीज के आसपास का माहौल शांत, सकारात्मक और सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है।

युवक की हालत अब स्थिर है लेकिन यह मामला खुली आंखों से हमें बता रहा है कि मानसिक स्वास्थ्य कोई मज़ाक नहीं। जरूरी है कि परिवार, दोस्तों और समाज के तौर पर हम समय रहते ऐसे संकेतों को समझें और बिना देर किए चिकित्सा मदद तक पहुंचें। आखिरकार, 5 किलो धातु किसी के पेट में ऐसे ही नहीं पहुंच जाती—इसके पीछे कहानी मानसिक उलझनों की है, जिसका हल खोजा जाना चाहिए।

द्वारा लिखित सुनन्दा सिंह

मैं एक समाचार विशेषज्ञ हूँ और मुझे भारत में दैनिक समाचार संबंधित विषयों पर लिखना पसंद है।