Durand Cup 2025: 0-2 से 4-2 की शानदार वापसी, फिर भी क्वार्टरफाइनल से बाहर रही इंडियन आर्मी

Durand Cup 2025: 0-2 से 4-2 की शानदार वापसी, फिर भी क्वार्टरफाइनल से बाहर रही इंडियन आर्मी

0-2 से 4-2: दिल जीतने वाली जीत, पर गणित ने रास्ता रोका

स्कोरशीट कहती है—इंडियन आर्मी 4, लद्दाख एफसी 2। कहानी कहती है—यह एक ऐसी वापसी थी जिसमें जज्बा, स्पीड और भरोसा साफ दिखा। 11 अगस्त 2025 को खेले गए इस ग्रुप C मुकाबले में इंडियन आर्मी दो गोल से पीछे थी, फिर भी टीम ने मैच पलटा और 4-2 से जीती। लेकिन टूर्नामेंट का गणित कड़ा होता है। जीत शानदार थी, पर क्वार्टरफाइनल की जगह नहीं मिली।

पहला हाफ इंडियन आर्मी के लिए भारी रहा। 23वें मिनट में गोलकीपर सय्यद कादिर के पेनल्टी बॉक्स में फाउल के बाद लद्दाख एफसी के पी. कमलेश ने पेनल्टी बदली और बढ़त दिलाई। 37वें मिनट में विघ्नेश ने रक्षा तोड़ते हुए सोलो रन पर गोल दाग दिया। 0-2—स्कोरबोर्ड कह रहा था कि लद्दाख नियंत्रण में है।

हाफ टाइम पर इंडियन आर्मी के सामने चुनौती साफ थी: सिर्फ जीत नहीं, बड़ा अंतर भी चाहिए था ताकि नॉकआउट की गाड़ी पकड़ी जा सके। यहीं से तस्वीर बदली। टीम ने टेम्पो बढ़ाया, प्रेस ऊंचा किया और विंगों से चौड़ाई बनाकर बॉक्स में धावा बोला। ब्रेक के बाद चंद मिनटों में स्कोर 2-2 कर दिया गया—यानी मोमेंटम अब पूरी तरह आर्मी के पास था।

लद्दाख की बैकलाइन दबाव झेल नहीं पाई। इंडियन आर्मी ने दूसरी गेंदें जीतीं, कॉर्नर और फ्लैंक्स से क्रॉस बरसाए और आखिरी तीसरे हिस्से में लगातार रन बनाए। इस रफ्तार ने दो और गोल दिलाए और स्कोर 4-2 पर ठहर गया। मैच के आखिरी हिस्से में लद्दाख ने काउंटर से वापसी की कोशिश की, पर फिनिशिंग साथ नहीं आई।

स्कोरलाइन जितनी चमकीली थी, तालिका उतनी बेरहम। इंडियन आर्मी ने ग्रुप चरण 6 अंकों और +2 गोल डिफरेंस के साथ खत्म किया। वे सभी समूहों की दूसरे स्थान पर रही टीमों में पांचवें नंबर पर रहे—जबकि आगे बढ़ने के लिए शीर्ष चार रनर-अप की लिस्ट में आना जरूरी था। टूर्नामेंट के इस फॉर्मेट में छह ग्रुप विजेताओं के साथ चार सर्वश्रेष्ठ दूसरे स्थान वाली टीमें नॉकआउट में जाती हैं, इसलिए एक और गोल का मार्जिन भी तस्वीर बदल सकता था।

यही फुटबॉल की बारीकी है—कभी-कभी 20 मिनट की हड़बड़ी पूरे टूर्नामेंट की दिशा तय कर देती है। इंडियन आर्मी ने हिम्मत दिखाई, खेल की क्वालिटी भी, लेकिन शुरुआती मैचों में गंवाए हुए छोटे-छोटे पॉइंट्स आखिर में भारी पड़े।

क्वालिफिकेशन का गणित, लद्दाख की शिकस्त और आगे का रास्ता

Durand Cup 2025 एशिया का सबसे पुराना फुटबॉल टूर्नामेंट है—134वां संस्करण, और दबाव हर मिनट दिखता है। ग्रुप स्टेज में मार्जिन पतला होता है, इसलिए हर गोल मायने रखता है। इंडियन आर्मी के मामले में यही हुआ—4-2 की जीत यादगार रही, पर गोल डिफरेंस बढ़ाने की जरूरत ज्यादा थी। टीम ने तीन अंक तो पा लिए, मगर नॉकआउट की लाइन से एक पायदान नीचे रह गई।

क्वालिफिकेशन के नियम सादे हैं, लेकिन असर गहरा:

  • पहला मानक—अंक।
  • फिर—गोल डिफरेंस।
  • उसके बाद—कुल गोल।
  • और बराबरी पर—आंतरिक मुकाबलों का रिकॉर्ड, अनुशासन अंक, फिर ड्रॉ तक बात जा सकती है।

जब कई ग्रुप्स में दूसरे स्थान की टीमें समान अंकों पर हों, तो एक-एक गोल तस्वीर बदल देता है। इंडियन आर्मी को पता था कि सिर्फ जीत नहीं, बड़ा स्कोर चाहिए। 4-2 अच्छा था, मगर क्लीन शीट या एक और गोल उन्हें टॉप-4 रनर-अप की कतार में ला सकता था।

मैच की रणनीति पर नज़र डालें तो हाफ टाइम के बाद इंडियन आर्मी ने फुलबैक को ऊपर धकेला, मिडफील्ड में ओवरलोड बनाया और बॉक्स के किनारे सेकंड बॉल्स उठाईं। इससे लद्दाख की लाइनों के बीच गैप खुला। सेट-पीस पर डिलीवरी सटीक रही और विंग से कट-बैक पर मौके बने। ट्रांजिशन में लद्दाख की संरचना ढीली दिखी—डीप ब्लॉक से बाहर आते ही टीम स्पेस छोड़ने लगी, जिसका फायदा आर्मी ने उठाया।

लद्दाख एफसी के लिए यह हार कड़वी रही। 2-0 की बढ़त, गेंद पर नियंत्रण और गति उनके पास थी। फिर क्या बिगड़ा? सबसे पहले—गेम मैनेजमेंट। 2-0 पर टीम अगर रफ्तार कुछ कम करती, बॉक्स की भीतरी जगह को बेहतर तरीके से पैक करती और फाउल की समझदारी दिखाती, तो दबाव टूट सकता था। दूसरा—बेंच से ताजा पैरों का समय पर इस्तेमाल। तीसरा—डिफेंसिव थर्ड में साफ क्लीयरेंस की कमी। ऐसे पलटवार अक्सर छोटी-छोटी गलतियों से शुरू होते हैं।

इंडियन आर्मी की वापसी उनकी फिटनेस और मानसिक मजबूती का सबूत थी। 0-2 पर घबराने की जगह उन्होंने टेम्पो बढ़ाया, गेंद वापस जीतने में आक्रामकता दिखाई और बॉक्स के भीतर संख्या बढ़ाई। कई बार ऐसे मैचों में पहली चिंगारी ही सब कुछ बदल देती है—एक ओवरलैप, एक सफल प्रेस, या कीपर की एक बड़ी सेव। यहां भी वही हुआ—जैसे ही पहला गोल आया, खेल का संतुलन उलट गया।

क्या अलग हो सकता था? कुछ सूक्ष्म बिंदु उभरते हैं:

  • पहले हाफ में जोखिम कम रखते हुए गेम को 0-1 पर रोकना—ताकि ब्रेक के बाद वापसी के लिए ज्यादा समय और ऊर्जा बचे।
  • काउंटर-प्रेस टूटने पर फाउल के जरिए टेम्पो तोड़ना—लद्दाख ने यह काम कम किया।
  • क्लीन शीट के लिए आर्मी का गेम क्लोजिंग—चौथा गोल आने के बाद डिफेंसिव कंट्रोल बढ़ाना गोल डिफरेंस बचा सकता था।

टूर्नामेंट संदर्भ में यह नतीजा एक बड़ा सबक दोहराता है—ग्रुप स्टेज में “परफॉर्मेंस” नहीं, “मार्जिन” मायने रखता है। कई बार मजबूत टीमों के खिलाफ ड्रॉ बचाना और कमजोर टीमों के खिलाफ बड़े स्कोर निकालना, यही नॉकआउट का टिकट बनता है। इंडियन आर्मी के लिए शुरुआती मैचों में छूटे मौके और आज के मैच में दो गोल खाना, दोनों ने मिलकर कुल तस्वीर पर असर डाला।

लद्दाख एफसी की बात करें तो यह अभियान उनके लिए कठिन रहा। इस मैच में 2-0 की बढ़त से वे अपने पहले तीन अंक की तरफ बढ़ रहे थे, पर दबाव में निर्णय गड़बड़ा गए। फिर भी उनके लिए पॉजिटिव्स हैं—फ्रंटलाइन ने पेनल्टी जीती, खुली खेल में सुंदर दूसरा गोल हुआ और पहले हाफ में संयोजन अच्छा दिखा। अगर गेम मैनेजमेंट सुधरता है और सब्सटिट्यूशन का समय बेहतर होता है, तो यह टीम अगले सीजन में अलग दिख सकती है।

डुरंड कप का भार इतिहास से आता है। 1888 से शुरू इस टूर्नामेंट में आई-एस-एल, आई-लीग और सर्विसेस की टीमें एक साथ खेलती हैं। मैच लगातार होते हैं, यात्रा रहती है, और स्क्वाड डेप्थ की परीक्षा हर दूसरे दिन होती है। ऐसे में फिटनेस, रोटेशन और सेट-पीस पर दक्षता ही फर्क पैदा करती है। इंडियन आर्मी जैसी डिसिप्लिन्ड टीमों के लिए यह मंच हमेशा आत्मविश्वास बढ़ाने वाला रहा है—और इस सीजन की वापसी जीत उस पहचान को और मजबूत करती है।

अब आगे क्या? इंडियन आर्मी के लिए यह सीजन-लंबी तैयारी का हिस्सा है। नॉकआउट से दूर रहना चुभेगा, पर इसी से अगली बार की रणनीति बनेगी—पहले हाफ में रिस्क मैनेजमेंट, कमजोर विपक्ष के खिलाफ बड़े स्कोर की प्राथमिकता और क्लीन शीट्स का लक्ष्य। वहीं लद्दाख की टीम को डिफेंसिव स्ट्रक्चर और मानसिक मजबूती पर काम करना होगा—खासकर जब बढ़त में हों।

दिन के आखिर में, स्कोर 4-2 था और स्टेडियम में बैठे दर्शकों ने एक रोमांचक पलटवार देखा। तालिका में जगह न बन पाना दुख देता है, पर खेल इसी का नाम है—कभी-कभी सबसे खूबसूरत जीत भी अगले दौर का दरवाज़ा नहीं खोलती।

द्वारा लिखित Pari sebt

मैं एक समाचार विशेषज्ञ हूँ और मुझे भारत में दैनिक समाचार संबंधित विषयों पर लिखना पसंद है।

Rajesh Sahu

ये टीम तो दिल जीत गई! 0-2 से 4-2 करके दिखा दिया कि भारतीय आर्मी का जुनून क्या है! ये मैच देखकर मेरी आँखों में आँसू आ गए! अगर ये टीम नॉकआउट में नहीं गई, तो टूर्नामेंट का नियम ही बेकार है! ये गणित नहीं, ये अन्याय है! जय हिन्द! जय आर्मी! 🇮🇳🔥💥

Chandu p

बहुत अच्छा खेल था 🙌 इंडियन आर्मी ने दिखाया कि जुनून और टीमवर्क से कुछ भी संभव है! ये मैच बच्चों के लिए प्रेरणा है! गोल के बाद उनकी मुस्कान देखकर लगा जैसे अपने बेटे ने गोल किया हो! इस टीम को भविष्य में भी देखना है! 💪⚽❤️

Gopal Mishra

इस मैच के बाद जो भी कहता है कि इंडियन आर्मी की टीम बस डिसिप्लिन और फिटनेस पर चलती है, वो बिल्कुल गलत है। ये टीम ने रणनीति, टेम्पो और एडजस्टमेंट के साथ एक ऐसा ट्रांजिशन दिखाया जो प्रोफेशनल लेवल पर भी दुर्लभ है। हाफ टाइम में फुलबैक को ऊपर धकेलना, मिडफील्ड में ओवरलोड बनाना, और सेट पीस पर सटीक क्रॉस देना-ये सब एक कोच के लिए बहुत बड़ी सफलता है। ये मैच टेक्निकल फुटबॉल का एक आदर्श उदाहरण है। अगर हम इसी तरह से युवा खिलाड़ियों को ट्रेन करें, तो अगले 10 साल में हमारी टीम एशिया में टॉप-3 में हो सकती है।

Swami Saishiva

बस एक गोल कम पड़ा और फिर भी रो रहे हो? ये टीम तो बस दिखावा कर रही थी। शुरुआत में 0-2 खाकर बेबस रह गई, फिर जब नॉकआउट का दरवाजा बंद हो रहा था तब लगाम खोल दी। ये जीत नहीं, बस इमोशनल फेक है। अगली बार अच्छा खेलो, नहीं तो ये दिखावा बंद करो।

Swati Puri

मैच के बाद के एनालिसिस में जो टेक्निकल एलिमेंट्स बताए गए-ओवरलोडिंग ऑफ मिडफील्ड, डीप ब्लॉक के बाहर निकलने पर लद्दाख की लाइन का ब्रेकडाउन, और सेकंड बॉल्स को लेकर एक्टिविटी-ये सब वास्तविक फुटबॉल टैक्टिक्स का बेहतरीन उदाहरण हैं। ये टीम ने पॉजिशनल प्लेयर्स को इस्तेमाल करने का तरीका सीख लिया है। अगर यही ग्राउंड लेवल रणनीति आईएल और आईएसएल में भी अपनाई जाए, तो भारतीय फुटबॉल का लेवल अच्छा बन सकता है। इस टीम को अगले सीजन के लिए एक टेक्निकल कोच की जरूरत है।

megha u

ये सब बकवास है। असल में किसी ने गेम ठीक से नहीं देखा। अगर आर्मी को नॉकआउट में जाना था, तो लद्दाख के खिलाफ 8-0 करना चाहिए था। ये जो 4-2 हुआ, वो तो बस बॉल लकी था। और ये टूर्नामेंट तो बस एक फेक है-सब कुछ बनाया गया है। अब तो अंक भी चुपचाप बदल जाते हैं। 🤷‍♀️