क्या आप जानते हैं कि हर साल 21 सितंबर को मातृभाषा दिवस मनाया जाता है? यह दिन यूनेस्को ने भाषा के महत्व को उजागर करने के लिए स्थापित किया था। भारत में भी इस दिन को खास तौर पर सच्ची भावना से मनाते हैं, क्योंकि हमारी कई भाषाएँ और बोलीयाँ कभी‑कभी खो जाती हैं।
इतिहास और महत्त्व
1952 में भारतीय कवि सर्वेश्वर द्विवेदी ने मातृभाषा को संरक्षित करने की अपील की थी, पर यूनेस्को ने 1999 में इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी। इस दिन का मुख्य मकसद लोगों को अपनी पहली भाषा के प्रति गर्व महसूस कराना और उसे बचाने के लिए कदम उठाना है। जब हम अपनी मातृभाषा बोलते हैं तो न सिर्फ हमारे सांस्कृतिक जड़ें मजबूत होती हैं, बल्कि नई पीढ़ी भी अपने मूल पहचान से जुड़ी रहती है।
घर में मनाने के आसान तरीके
आपके घर में इस दिन को बड़े धूमधाम से मनाया जा सकता है – बिन किसी खर्चे के:
भाषा खेलें: शब्दकोश बनाकर बच्चों को रोज़ एक नया शब्द सिखाएँ।
कहानी सुनाएँ: दादा‑दादी या बुजुर्गों से पुरानी लोककथाएं सुनवाएँ, जिससे भाषा का प्रयोग बढ़ेगा।
भोजन में स्थानीय स्वाद: अपने क्षेत्र की पारंपरिक रेसिपी तैयार करके खाने के साथ भाषा के बारे में बात करें।
सोशल मीडिया पर पोस्ट: अपने पसंदीदा शायरी या कहावत को हिंदी/उर्दू/बांग्ला आदि में शेयर करें और दूसरों को भी जोड़ें।
स्कूल या कॉलेज में अगर आप छात्र हैं, तो एक छोटा नाटक या काव्य सम्मेलन आयोजित कर सकते हैं। इससे सबको मज़े‑मज़ाक में भाषा के बारे में सीखने का अवसर मिलेगा।
ध्यान रखें कि मातृभाषा सिर्फ शब्द नहीं है, यह हमारी सोच और व्यवहार को भी आकार देती है। इसलिए इस दिन को यादगार बनाना आसान है – बस थोड़ा समय निकालें और ऊपर बताए गए छोटे‑छोटे उपाय अपनाएँ। जब आप अपने घर में या दोस्तों के साथ भाषा का जश्न मनाते हैं तो आप अनजाने में ही इसे बचा रहे होते हैं।
आख़िरकार, मातृभाषा दिवस सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संभालने की प्रतिबद्धता है। इस अवसर पर हर कोई अपने-अपने तरीके से योगदान दे सकता है – चाहे वह किताब पढ़ना हो, कविताएँ लिखना या बस रोज़मर्रा की बातचीत में अपनी भाषा का उपयोग करना। तो अगली बार जब 21 सितंबर आए, याद रखिए – एक छोटी सी कोशिश बड़े बदलाव की शुरुआत बन सकती है।
त्रिपुरा ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रजत जयंती अवसर पर भाषाई विविधता और सांस्कृतिक विरासत को उजागर किया। इस मौके पर मंत्री आर एल नाथ ने शिक्षा और शासन में अंग्रेजी पर अत्यधिक निर्भरता की आलोचना करते हुए क्षेत्रीय भाषाओं के प्रचार की जरूरत पर बल दिया। यह दिन भाषा विविधता की रक्षा की जरूरत की याद दिलाता है।